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समीक्षा
गमन कर सकते हैं उनमें इतनी ही योग्यता है अधिक नहीं । इमलिये धर्मास्तिकायके अभाव में जीव और पुद्गल लोकान्तके आगे गमन नहीं य र सकते । इसी कारण लोकालोककी मर्यादा अनादिकाल से बनी हुई है। ___ सर्वार्थ मिद्धिक देवा में सातवें नरक तक जानेकी शक्ति विद्यमान भी आप मानते हैं और उनमें वहां तक जाने की योग्यताका अभाव भी मानते हैं यह कैसा ? क्या योग्यता और शक्ति में अंतर है ? कुछ भी नहीं केवल नामान्तर है शक्ति कहो या स्वाभाविक हो या योग्यता कहो सव एकार्थवाची शब्द हैं । इसलिये सर्वार्थसिद्धि के देवोमं सातवे नरक तक जानेको योग्यता तो है किन्तु उनको वैसा निमित्त ही नहीं मिलता जो वे स्वक्षेत्रको छोडकर अन्य क्षेत्रमें गमन करें जैसा कि सिद्ध भगवान अनन्त शक्तिके धारक होकर भी वे एक स्थानसे टससे मस नहीं होते इसका कारण यहा है कि निमित्त कारणके अभाव में उनका हलन चलन नहीं होता । इसी तरह सर्वार्थसिद्धि के देवोंको सातवें नरक तक जानेका निमित्त नहीं मिलता इसीलिये वे स्वक्षेत्रको छोडकर अन्य चोत्र में नहीं जाते । इससे यह सिद्ध नहीं होता कि उनमें स्वक्षेत्र छोडकर अन्य क्षेत्रमें जानेकी योग्यता ही नहीं है। अतः योग्यताकी उपयोग्यता विना निमित्त के सिद्ध नहीं होती ऐसा स्वीकार करना होगा। ___ कर्तृत्व कर्म और षट् कारक मीमांसा में भी आपने एकान्त पक्षका ग्रहण किया है अर्थात् व्यवहार दृष्टिको छोडकर केवल निश्चय का ग्रहण कथन किया है । किन्तु आचार्योंने व्यवहार दृष्टिको साथमें रखकर ही निश्चयनयका कथन किया है क्यों कि व्यवहार दृष्टिको छोडकर केवल निश्चय दृष्टिसे कथन करनेसे वस्तु स्वरूपकी प्राप्ति नहीं होती दोनो पक्ष दिखानेसे
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