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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन तत्त्व मीमासां की mmmar इनके ऊपर सिद्धशिला और सिद्ध क्षेत्र यह अनादि निधन व्यवस्था है। इसी प्रकार मध्य लोकके असंख्यात द्वीप समुद्र उस में कर्मभूमि भोगभूमि कुलाचलादि सब व्यवस्थित हैं। अधोलोकमें भी रत्न शर्करादि सात पृथ्वी और उसके आश्रय सात नरकों के पटल विला आदि सब नियतरूप से ब्यवस्थित हैं। उसी प्रकार कृत्रिम पदार्थ नियतरूपसे व्यवस्थित नहीं रह सकता इसलिये अकृत्रिम पदार्थोकी व्यवस्थाके साथ क्षणिक पर्यायकी ब्यवस्था व्यवस्थित बतलाना क्या न्यायसंगत है ? कभी नहीं अतः क्षणिक पदार्थकी ब्यवस्था नियमित रूपसे नहीं रह सकती यह अटल नियम हैं । इस लिये क्षेत्र अपेक्षा भी क्रमवद्ध पर्याय की सिद्धि नहीं हो सकती अतः आपने जो क्षेत्र अपेक्षा सम्यक नियति वोलकर क्रमबद्ध पर्यायकी पुष्टि करने का प्रयत्न किया है वह सर्वथा न्याय युक्ति और आगम विरुद्ध है। ___कालकी अपेक्षा भी क्रमवद्ध पर्यायकी पुष्टि नहीं होती। जो आपका यह कहना है कि "काल अपेक्षा जिस प्रकार अवलोक अधोलोक और मध्यलोक भोगभूमि सम्बन्धि क्षेत्र में तथा स्वयंभूरमणद्वीपके उत्तरार्ध और स्वयंभूरमणसमुद्रमे जहाँ जिसकाल की ब्यवस्था है वहा अनादिकालसे वहां उसी कालकी प्रवृत्ति होती रहेगी और विदेह क्षेत्र सम्बन्धी कालका भी यही नियम है। इसके सिवाय जो कर्म भूमिकाक्षेत्र बचा है उसमें कल्पकालके अनुसार निरन्तर और नियमित ढंगसे उत्सर्पिणी और अवस. र्पिणी कालकी प्रवृत्ति होती रहती है । इन कालोंकी स्थिति दस दस कोडा कोडी सागरकी निश्चित है तथा इनमें जो छः छः कालोंकी प्रवृत्ति होती है वह भी निश्चित है अर्थात् कालोंके अनुसार आयु कायादिकी घटा वढी नियमानुसार ही होती है । इनमें दूसरा कोई निमित्त कारण नहीं है जो उसके जरिये ऐसा होता For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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