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समीक्षा
२६१
बाकी गलती हो तो उसका सुधार भी हो सकता है किन्तु जिस का घान ही बिगड चुका है उसका सुधार कैसे होय ? अर्थात् नही होय ।
ऐसा एक भी आगमप्रमाण नहीं मिलता जो कि यह जीव शुभाशुभ कर्म कैसे ही करते जावें किन्तु उसका फल बन्धके अनुसार न मिलकर जो भविष्य में नियत समय में जो पर्याय उदयमें आनेवाली है उसके अनुसार ही फल मिलेगा ! परन्तु आपके कथनानुसार जीवके साथ त्रिकालमम्बन्ध पर्यायें विद्यमान रहती हैं उसमें से जो भविष्यकाल में क्रमवार जो पर्यायें होनेवाली हैं वही होगी, कर्मवन्धके अनुसार नहीं होगीं यह बात जैनागमसे सर्वथा विपरीत है। ऐसा माननेसे न तो घरवार छोडकर तपश्चरण करनेकी ही जरूरत है और न पापसे डरनेकी ही जरूरत है क्योंकि हमारी आत्मा के साथ जो भविष्य में उदयमें आनेवाली अनन्तानन्त पर्यायें विद्यमान हैं उन्ही में से क्रमबद्ध उदयमें नियतसमय में आवेगी उसके अतिरिक्त टमसे मस और कुछ होनेवाला नहीं है। फिर हमको तपश्चरण करनेकी और पापकर्म करनेसे डरने की जरूरत ही क्या है ? क्योंकि उसका फल तो हमको मिलेगा ही नहीं, फल तो हमको स्वकालमें उदयमें आनेवाली पर्यायके अनुसार ही भोगना पड़ेगा जो जीवके साथ नियत है ।
यदि ऐसा कहा जाय कि जो वर्तमानमें शुभ अशुभकर्म करते अथवा जो पूर्व में शुभाशुभकर्म किये हैं उनसत्रका परिणमन स्वकालमें उदयमें आनेवाली पर्यायानुसार होजाता है इसलिये शुभाशुभ कर्मवन्धके अनुसार उदयमें न श्राकर वन्धका संक्रमण स्वकाल में उदय में आनेवाली पर्यायके अनुसार होजाता है, परन्तु इसकेलिये भी कोई आगमप्रमाण होना चाहिये । विना प्रमाणके सव श्रप्रमाण है तभी थोडीदेरके लिये यदि हम आपके कथनको
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