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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा क्योंकि वह कथन शंका रूप में किया गया है । उसका उत्तर इखिये, जिससे स्पष्ट होजाता है कि मोक्ष प्राप्तिका कोई निश्चित काल नहीं है । क्यों कि कर्मोंकी निर्जरा पूर्वक मोक्ष होती है। अतः यह जीव जिस समय में पूर्ण कर्मोकी नर्जरा करदेता है उसी समय उसको मोक्ष हो जाती है उसमें कालका नियम नहीं है और वह मोक्ष प्राप्ति निसर्गज (स्वभावसे उत्पन्न होनेवाले ) सम्यक्त्वसे ही मोक्षप्राप्ति होती है अधिगमज मम्यक्त्व में नहीं है इसका कारण यह है कि परनिमित्तसे ( उपदेशादि वाह्यनिमित्त से ) जो आत्मामें सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है वह भी तो निसर्गज ही है अर्थात् वह आत्माका ही तो स्वभाव स्वरूप आत्मा ही में है । इसलिये निज स्वभाव रूप जो परिणमन है वह निसर्गज रूप ही है और वह निर्विकल्प है। किन्तु अधिगमज सम्यक्त्व है वह सविकल्प है इस कारण जहां सविकल्पता है वहां ध्यानकी सिद्धि नहीं है तथा ध्यानकी सिद्धि विना कमों की पूर्ण निर्जरा नहीं होती और पूर्ण निर्जराके बिना मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती इस ट्रिकोगको ध्यानमें (लक्षमें) रखकर अकलंकदेवने निसर्गज सम्यक्त्वसे ही मोक्ष प्राप्ति कही है। परन्तु इससे कोई यह नहीं समझे कि अधिगमज सम्यक्त्व मोक्ष प्राप्तिमं कारण ही नहीं है । विना अधिगमजसम्यक्त्व के निसर्गज सम्यक्त्व होता ही नहीं यह नियम है । अतः अधिगमज सम्यक्त्व कारण है और निसर्गजसम्यक्त्व कार्य है। अनादि मिथ्यावष्टि जीवके वाम उपदेशादिकका निमित्त मिले विना सम्यक्त्वकी प्राप्ति नहीं होती यह वात हम ऊपरमें मोक्षमार्ग प्रकाश ग्रन्थके प्रमाण से सिद्ध कर आये हैं ! अधिगमज सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद यह जीव अधिकसे अधिक संसार परिभ्रमण करता है तो अर्धपुरलपरावर्तन काल तक ही कर सकता है इससे For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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