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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा १५६ त्यों बुधको व्यवहार भलो तवलौं जवलौ शिव प्रापति नाही! यद्यपि यो परमाण तथापि मधे परमारथ चेतन माहीं जीव अव्यापक है परतों विवहारसों तो परकी परछाहीं अर्थात् परमार्थकी सिद्धि तो चैतन्यमें ही होती है तो भी जवतक शिव प्राप्ति न हो तब तक व्यवहारका साधन करते रहना यह न्याय प्राप्त है प्रमाणभूत है । जैसे कोई पुरुष गिरसों गिरजाय तो उससमय उसका हितू उसका दृढ भूजाही है. उसके द्वारा वह किसी पत्थर या वृक्ष को पकडकर गिरनसे वचजाता है क्षम कुशलस अपन ठिकाने पहुंच जाता है । उसी प्रकार बुध ( ज्ञानी ) जना को तवतक शिव प्राप्ति न हो जवतक बवहारही शरणभूत है क्योंकि व्यवहारही संसार में पडते हुये को बचाता है .. अर्थात् अधर्म जो श्राचरौद्रादि अशुभ ध्यान संसारके पतनका कारण है उनसे बचाता है । इसलिय व्यवहारका लोप करनेसे परमार्थका सिद्धि होगी यह वात सर्वथा आगम विरुद्ध है । आपने पहिले तो व्यवहार धर्मका लोप करने के लिये हरिजनोंको मंदिर , प्रवेश करानेका प्रयत्न किया यहांतक कि आचार्य शान्तिसागरजीको हरिजनमंदिर प्रवेशमें वाधक घोषित कर उनको अपराधी ठहराया और उनको कानूनद्वारा दंडित करनेकी सरकारसे प्रेरणा कीगई । नथा गणेशप्रसादजी वर्णीजी से हरिजन मंदिर प्रवेशका ममर्थन कराया । जिससे यहां तक की नोबत आई कि वीसीको ईसरी छोडनेकेलिये तैयार होना पड़ा। जब वर्णीजी ने अपनी For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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