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समीक्षा
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इसकथनसे नेगमादिनयोंको असत्यार्थ मानना गृहीत मिथ्यात्वका कारण है । जैनागममें ऐसा कोई भी महासत्ताको स्थान नहीं मिला है जो जड चेतनकी एकत्वसत्ता स्थापित करती है । क्योंकि जहां जडचेतनकी एकत्वसत्ता स्थापित की जायगी वहां न जडको ही सत्ता रहसकती है और न चेतन का ही सत्ता रह सकती है। ऐसी दशामें दोनोंकी सत्ताका ही अभाव सिद्धहोगा इसलिये आप जो परसंग्रहनयके उदाहरण में यह बतलाते हैं कि ___ "अभिप्रायविशेषसे सादृश्य सामान्यरूपस महासत्ताको जैनदर्शनमें स्थान मिला हुआ है । इसद्वारा यह बतलाया गया है कि यदि कोई कल्पित युक्तियोंका द्वारा जड चेतन सव पदार्थोंमें एकत्व स्थापित करना चाहता है तो वह उपचारत महासत्ता को स्वीकार करके उसके द्वारा ही ऐसा कर सकता है "
सो क्या यह जैनागममें मानी हुई संग्रहनयका विषय है या परमंग्रहनयका विषय है ? यदि जैनागममें मानी हुई संभह नयका विषय जडचेतनकी एकत्वसत्ता स्थापित करनेका है अथवा उसे महासत्ता वोल कर स्वीकार किया गया है तो बतानेकी वृपा करें कि ऐसा कहां पर लिखा है ? यदि जैनागममें जडचेतनकी अद्वै. तसत्ता कहीं पर भी सत्ता स्वीकार नहीं की गई है नो फिर पर संग्रहनयका उदाहरण देकर समीचीन स्वरूपसका स्थापित करने वाले संग्रहनयको उपचरित ठहरा कर जिम महासत्ताम स्वरूपसत्ताका लोप हो ऐसी जडचेतनकी एकत्तमत्तागे ना मारना क्या यह न्यायसंगत है ? कदापि नहीं । अत: नाम मानी हुई संग्रहनयसे स्वरूपसत्ताका ही बोध होता है, लोप नहीं होता इसवात को हम ऊपरमें संग्रह नयके लक्षणमें दिखा चुके हैं । समयसारके मोक्षद्वारमें भी सत्ता स्वरूपका निर्णय किया गया है वह इस प्रकार है
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