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________________ आत्मनिवेदन जैनतत्त्वमीमांसाका प्रथम संस्करण सन् १९६० के उत्तराध में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद तत्त्वप्ररुपणाको लक्ष्यकर अनेक उत्तार चढ़ाब आये हैं, उनके फलस्वरूप सन् १९६३ के आस-पास एक पक्षके कतिपय विद्वानोंके विशेष अनुरोधवश श्रीव० सेठ हीरालालजी पाटनी निवाई और श्री ७० लाडमलजी जयपुरके आमन्त्रणपर ससंघ श्री १०८ आचार्य शिवसागरजी महाराजकी सन्निधिमें उभय पक्षके विद्वानोंका एक सम्मेलन बुलाया गया था। यह सम्मेलन खानिया (जयपुर) में लगभग १० दिन चला था। यद्यपि इस विषयमें मुझसे अणुमात्र भी परामर्श नही किया गया था, फिर भी उभय पक्षको मान्य कतिपय नियमोके बन जानेसे मैं अपने सहयोगी दूसरे विद्वानोंके साथ इसमें सम्मिलित हो गया था। __नियमानुसार लिखित चर्चा तीन दौग्में पूर्ण होनो थी। उनमेंसे दो दौरकी लिखित चर्चा तो वहीं सम्पन्न कर लो गई थी। तीसरे दौरकी चर्चा परोक्षमें लिखित आदान-प्रदानसे सम्पन्न हो सकी । नियम यह था कि लिखित रूपमें जो भी सामग्री एक-दूसरे पक्षको समर्पित की जायगी उसपर सम्मेलनके समय अपने-अपने पक्षके निर्णीत प्रतिनिधि हस्ताक्षर करेंगे और मध्यस्थके मार्फत वह एक-दूसरेको समर्पित की जायगी। किन्तु तीसरे दौरकी सामग्री समर्पित करते समय उस पक्षकी ओरसे इस नियमकी पूर्णरूपसे उपेक्षा की गई, क्योंकि उस पक्षकी ओरसे जो लिखित सामग्री रजिष्ट्री द्वारा हमें प्राप्त हुई थी उसपर न तो उस पक्षके पाँचमेंसे चार प्रतिनिधियोंने अपने हस्ताक्षर ही किये थे और न ही वह मध्यस्थकी मार्फत ही भेजी गई थी। उसपर केवल एक प्रतिनिधिने हस्ताक्षर कर दिये और सीधी हमारे पास भेज दी गई। उस पक्षके प्रतिनिधि विद्वानो द्वारा ऐसा क्यों किया गया यह तो हम नहीं जानते। फिर भी इसपरसे यह निष्कर्ष तो निकाला ही जा सकता है कि उस पक्षकी ओरसे तीसरे दौरकी जो लिखित सामग्री तैयार की गई उसमें उस पक्षके अन्य चार प्रतिनिधि विद्वान सहमत नहीं होंगे । यदि सहमत होते तो वे नियमानुसार अवश्य ही हस्ताक्षर करते और साथ ही नियमानुसार मध्यस्थकी मार्फत भिजाते भी। उन प्रतिनिधिस्वरूप चार विद्वानोंका हस्ताक्षर न करना अवश्य ही तीसरे दौरकी उस पक्षकी ओरसे प्रस्तुत की गई लिखित पूरी सामग्रीपर प्रश्न चिन्ह लगा देता है। तत्काल इस विषयपर हम और अधिक टिप्पणी नहीं करना चाहते । आवश्यकता पड़ी तो लिखेंगे।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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