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केवलज्ञानस्वभावमीमांसा
दर्पण ज्यों लसत है सहज वस्तुका विम्ब । केवलज्ञान पर्याय निखिल ज्ञेय प्रतिबिम्ब ||
१. उपोद्धा
अब जो अपरिमित माहात्म्यसे सम्पन्न है ऐसे केवलज्ञान स्वभावकी मीमांसा करते हैं । यह तो हम इन्द्रियोंसे हो जानते हैं कि जब जिन पदार्थोंका सम्बन्ध स्पर्शन इन्द्रियसे होता है तब उन पदार्थोंके स्पर्श तथा हलके-भारीपन आदिका ज्ञान स्पर्शन इन्द्रियसे होता है। जब जिन पदार्थोंका सम्बन्ध रसना इन्द्रियमे होता है तब उन पदार्थों के खट्टेमीठे आदि रसका ज्ञान रसनेन्द्रिय से होता है। जब जिन पदार्थों का सम्बन्ध घ्राण इन्द्रियसे होता है तब उनके गन्धका ज्ञान घ्राण इन्द्रियसे होता है । जब जो पदार्थ आखोंके सामने आते हैं तब उनके वर्ण और आकार आदिका ज्ञान चक्षु इन्द्रियसे होता है और जब जिन शब्दोंका सम्बन्ध श्रोत्र इन्द्रिय से होता है तब उनका ज्ञान श्रोत्र इन्द्रिय से होता है । ये पाँचों इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयको ग्रहण करनेमें सक्षम हैं ।
साथ ही हम यह भी जानते हैं कि निकटवर्ती या दूरवर्ती, अतीतकालीन, वर्तमानकालीन या भविष्यकालीन इस्थंभूत या अनित्यंभूत जब जो पदार्थ मनके विषय होते हैं तब वे मनसे जाने जाते हैं । उक पाँच इन्द्रियाँ तो केवल वर्तमान कालीन अपने-अपने विषयोंको ही जानती हैं, जब कि मन वर्तमान कालीन विषयोंके साथ अतीतकालीन और भविष्यकालीन विषयोंको भी जानता है, क्योंकि जो पदार्थ मनके द्वारा जाने जाते हैं वे विकल्पद्वारा हो जाने जाते हैं ।
इससे हम जानते हैं कि ज्ञानमें तो सबको जाननेकी स्वभावभूत शक्ति है, मात्र व्यवहारसे पराश्रितपनेकी भूमिकामें ही वह युगपत् समग्र विषयको ग्रहण करनेमें स्वयं समर्थ नहीं होता । क्षयोपशमरूप पर्यायका स्वभाव ही ऐसा है । यह तथ्य है जिसे ध्यान में लेनेसे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जो ज्ञान स्वयं पराश्रितपनेसे मुक्त होकर जानता है उसमें पराश्रितपनेके माधारपर यह भेद करना सम्भव नहीं है कि वह इस समय केवल स्पर्शको ही जाने, रसादिको न जाने । या वर्तमानकालीन