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________________ अनेकानन स्वावादमीमांसा - ३७१, इसमें एक ही द्रव्य कैसे तत्-अतत्स्वरूप आदि है यह स्पष्ट करनेके साथ सप्तभंगीका भी निर्देश किया गया है। १२. जिनागममें मूल यो नोंका हो उपवेश है . प्रवचनसार और तत्त्वार्थसूत्र आदिमें द्रव्यका गुणपर्ययबद्रव्यम् । यह लक्षण दृष्टिगोचर होता है। इस पर तत्वार्थवार्तिकमें शंकासमाधान करते हुए मट्टाकलंकदेव कहते हैं__ गुणा इति संज्ञा तन्त्रान्तराणाम्, आर्हतानां तु द्रव्यं पर्यायश्चेति द्वितीयमेव तस्वम्, अतश्च द्वितीयमेव तद्वयोपदेशात् । द्रव्यार्षिकः पर्यायार्षिक इति द्वावेज मूलनयो । यदि गुणोऽपि कश्चित् स्यात्, तद्विषयेण मूलनयेन तृतीयेन भवितव्यम् । न चास्त्यसाविति अतो गुणाभावात् गुणपर्यायवदिति निर्देशो म युज्यते ? तन्न, ' किं कारणम्, अर्हत्प्रवचनहृदयादिषु गुणोपदेशात् । उक्तं हि अर्हत्प्रवचने 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः' इति । अन्यत्र चोक्तम् गुण इदि दव्वविधाणं दम्ववियारो य पज्जयो भणियो। तेहिं अणुणं दव्वं अजुदपसिद्ध हवदि णिच्च ।। यदि गुणोऽपि विद्यते, ननु चोक्तम्-तद्विषयस्तृतीयो मूलनयः प्राप्नोति ? नैष दोष', द्रव्यस्य द्वावात्मानौ सामान्यं विशेषश्चेति । तत्र सामान्यमुत्सर्गोऽन्वयः गुण इत्यनर्थान्तरम् । विशेषो भेदः पर्याय इति पर्यायशब्द. । तत्र सामान्यविषयो नयो द्रव्यार्षिक । विशेषविषय. पर्यायाथिक. । तदुभयं समुदितमयुतसिद्धरूपं द्रव्यमित्युच्यते । न तद्विषयस्तृतीयो नयो भवितुमर्हति, विकल्पादेशस्वाम्नयानाम् । तत्समुदायोऽपि प्रमाणगोचरः, सकलादेशत्वात् प्रमाणस्य ।' गुणा एव पर्याया इति वा निर्देशः । अथवा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्याणि न पर्यायाः। न तेम्योऽन्ये गुणा सन्ति । ततो गुणा एव पर्याया इति सति समानाधिकरण्ये मती सति गुण-पर्यायवदिति निर्देशो युज्यते । पृ० २४३ । शंका-गुण यह संज्ञा अन्य दर्शनोंको है। आहत दर्शनमें तो द्रव्य और पर्याय इस प्रकार दो रूप ही तत्व है और इसलिये तत्त्वको दो रूप स्वीकार कर उन दोका उपदेश दिया गया है। द्रव्याथिक और पर्यायाथिक ये दो मूल नय हैं। यदि गुण भी कोई पृषक तत्त्व है तो उसको विषय करनेवाला तीसरा नय होना चाहिये । परन्तु तीसरा नय नहीं है, इसलिये गुणका अभाव होनेसे 'गुण-पर्यायवद् द्रव्यम्' यह निर्देश नहीं बन सकता? समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि अर्हत्त्रवचन आदि आगमोंमें गुण
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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