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. अनेकान्त-मावस्यीयांसा
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लम्बन लेकर एकत्वस्वरूप आत्माके अनुवयके सम्मुख होनेकर उसम कर रहा है उसके अन्य सब विकल्प स्वयं छूट जाते हैं। :: ... .
शंका-अब यह भात्मा निर्णय करनेके खम्मुख होता है सब क्या . विचार करता है? ___ समाधान-तब अवश्य ही वह यह विचार करता है कि मोक्षमार्गमें निश्चयका अवलम्बन लेना ही प्रयोजनीय है, अभ्य नहीं। और जब यह जीव ऐसा निर्णय कर लेता है तभी बह निश्चयस्वरूप एकत्वके सन्मुख होनेका उद्यम करने में समर्थ होता है। इसीलिये नयचक्रमें यह कहा गया हैं
बवहाराबो बन्धो मोक्खो जम्हा सहावसंजुत्तो।
तम्हा कुरु से गउणं सहावमाराणाकाले ॥३४२॥ यत व्यवहारसे (पराश्रित विकल्पसे) बन्ध होता है और स्वभावमें लीन होनेसे मोक्ष होता है, इसलिये स्वभावकी आराधनाके समय व्यवहारको गौण करना चाहिये ॥३४२।। और भी कहा है
जीवो सहावमओ कह पि सो चेव जादपरसमको।
जुत्तो जइ ससहावे तो परमावं खु मुचेदि ॥४०२॥ जीव अपने स्वभावमय है, किसी प्रकार वह परसमय हो गया है। यदि वह अपने स्वभावमें लीन हो जाय तो परभावको छोड़ देता है अर्थात् परभावसे स्वयं मुक्त हो जाता है ॥४०२॥
परभावसे मुक्त होना ही मोक्ष है। इससे सिद्ध हुआ कि स्वभावमें लीन होना ही मोक्षका उपाय है, अन्य नहीं । इसी तथ्यको दूसरे प्रकारसे स्पष्ट करते हुए पंचस्तिकायमें लिखा है
जीबो सहाबणियको अणियदगुणपज्जबोष परसमको ।
जह कुणइ सगसमयं पभस्सदि कम्मबंधादो ॥१०॥ जीव स्वभावनियत होनेपर भी ससार अवस्थामें अनियत गुणपर्यायवाला होनेसे परसमय है। यदि वह स्वसमयरूप परिणमता है तो ट्रव्य-भाव उभयरूप कर्मबन्धसे छूट जाता है। ,
जीव शान-दर्शनस्वभाव है। किन्तु संसार अवस्थामें बनादि कालसे मोहोदयका अनुसरणकर उपरक्त उपयोगवाला होकर राग-द्ववादि रूप