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जनतत्त्वमीमांसा
तद्धेतुत्वमपि भिन्नमिति परप्रत्ययापेक्षया उत्पादो विनाशश्च व्यवह्रियते । स० [सि० तथा त० वा० अ० ५ सू० ७ ।
इन तीनों द्रव्यों में परनिमित्तक भी उत्पाद और व्यय होता है, क्योंकि rea आदिकी गति, स्थिति और अवगाहत में क्रमसे धर्मादिक तीनों द्रव्य निमित्त होते हैं । यत इन गति आदिकमे क्षण क्षणमे अन्तर पड़ता है, इसलिये इनके कारण भी भिन्न-भिन्न होने चाहिये इस प्रकार इन धर्मादिक द्रव्योंमें परप्रत्यय उत्पाद और व्यय व्यवहृत होता है ।
व्याख्या में भी दुहराई गई
यही बात 'कालश्च' इस सूत्र की है । यथा
arrant परप्रत्ययो अगुरुलघुगुणवृद्धिहान्यपेक्षया स्वप्रत्ययौ च ।
काल द्रव्यकी व्यय और उत्पाद पर्याय परनिमित्तक होती हैं तथा अगुरुलघु गुणों ( अविभागप्रतिच्छेदों ) की वृद्धि और हानिकी अपेक्षा स्वप्रत्यय व्यय और उत्पाद पर्याये होती है ।
गुण शब्द पर्यायांश अर्थमे भी व्यवहृत होता है यह बात हम त० सू० अ० ५ के 'न जघन्यगुणाना' इत्यादि तीन सूत्रोंसे तो जानते ही हैं । साथ ही तत्त्वार्थवार्तिक अ० ५ सू० १ के इस वचनसे भी इसकी सिद्धि होती है
रूपरसगन्धस्पर्शयुक्ता हि परमाणव एकगुणरूपादिपरिणता द्वित्रिचतु.सख्ये या सख्येयानन्त गुगणत्वेन वर्धन्ते । तथैव हानिमपि उपयान्तीति गुणपेक्षयापूरणगलन क्रियोपपत्ते. परमाणुष्वपि पुद्गलत्वमविरुद्धम् ।
जो एक अविभागप्रतिच्छेदको लिये हुए रूप आदिसे परिणत रूप, रस, गन्ध और स्पर्शवाले परमाणु है वे दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात और अनन्त अविभाग प्रतिच्छेदरूपसे वृद्धिको प्राप्त होते हैं । तथा उसी प्रकार हानिको भी प्राप्त होते है । इस प्रकार अविभागप्रतिच्छेदों की अपेक्षा पूरण-गलनक्रियाकी उपपत्ति बन जानेसे परमाणुओं में भी पुद्गलपना अविरोधरूपसे बन जाता है ।
८. शंका-समाधान
शंका- परमार्थसे जब सभी पर्यायें स्वसे ही उत्पन्न होती हैं तब किन्ही पर्यायोंको स्वभावपर्यायकी संज्ञा देना और किन्हीको विभावपर्यायी संज्ञा देना ऐसा भेद क्यों किया जाता है ?
समाधान - अन्य द्रव्योंकी अपेक्षा तो यहाँ विशेष ऊहापोह नहीं