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जैनतत्त्व-मीमांसा
तत् द्विविधम्, सराग- वीतरागविषयभेदात् । प्रशम-संवेगानुकम्पास्तिक्याद्यभिव्यक्तिलक्षण प्रथमम् । आत्मविशुद्धि मात्र मितरत् ।
वह सम्यग्दर्शन दो प्रकारका है -- सराग सम्यग्दर्शन और वीतराग सम्यग्दर्शन । प्रश्म, संवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य आदिकी अभिव्यक्ति लक्षणवाला प्रथम सम्यग्दर्शन है और आत्माकी विशुद्धिमात्र दूसरा सम्यग्दर्शन है। सूत्र १-२ ।
तत्त्वार्थवार्तिकमें भी उक्त प्रकारसे सम्यग्दर्शनके दो भेद और लक्षण free किये गये हैं । उनकी विशेष व्याख्या करते हुए लिखा है
रागादीनामनुद्रेकः प्रशम, संसाराद् भीरता सवेगः, सर्वप्राणिषु मंत्री अनुकम्पा, जीवादयोऽर्थाः यथास्वं भावैः सन्तीति मतिरास्तिक्यम् । ... सप्तानां कर्मप्रकृतीनां आत्यन्तिकेऽपगमे सत्यात्मविशुद्धि मात्रमितरत् वीतरागसम्यक्त्वमित्युच्यते । सू० १-२ ।
रागादिकका विशेषरूपसे प्रकट नही होना प्रशम है, संसारसे डरना संवेग है, प्राणीमात्रमें मैत्रीभाव अनुकम्पा है और जीवादि पदार्थोंका जैसा स्वरूप है वे उसी रूप हैं ऐसी मतिका होना आस्तिक्य है" कर्म प्रकृतियोंके अत्यन्त अभाव होने पर जो आत्मामें विशुद्धि विशेष प्राप्त होती है वह दूसरा वीतराग सम्यग्दर्शन कहा जाता है। सूत्र १-२ ।
सात
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तत्त्वार्थवार्तिक में इस उल्लेखको देखकर कितने ही विद्वान् क्षायिक सम्यग्दर्शन रूप से प्राप्त हुई आत्मविशुद्धिको ही वीतराग सम्यग्दर्शन स्वीकार करते हैं । वे सम्यग्दर्शनके व्यवहारसे प्रतिबन्धक मिध्यात्व आदि सात प्रकृतियोंके उपशम और क्षयोपशमसे प्राप्त हुई आत्मविशुद्धिकी किस सम्यग्दर्शनमे परिगणना करते हैं यह वे ही जानें। अस्तु, अब यहाँ वस्तुस्थिति क्या है इसकी मीमांसा करनेके लिए सर्व प्रथम तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिकमें क्या कहा है इस पर विचार करते हैं । उसमें भी सर्वप्रथम
प्रशमादिके स्वरूपका निर्देश करते हुए कहा है
तत्रानन्तानुबन्धीना रागादीना मिथ्यात्व - सम्यग्मिथ्यात्वयोश्चानुद्रेकः प्रशम' । व्य-क्षेत्र - काल-भव-भावपरिवर्तनरूपात् ससाराद् भीरुता सवेगः । त्रस - स्थावरेषु प्राणिषु दयानुकम्पा । जीवादितत्त्वार्थेषु युक्त्यागमाभ्यामविरुद्धेषु याथात्योपगमनमास्तिक्यम् । एतानि प्रत्येकं समुदितानि वा स्वस्मिन् स्वसविदतानि परत्र काय - वाग्व्यवहारविशेष लिगानुमितानि सरागसम्यग्दर्शनं ज्ञापयन्ति । पृ० ८६ ।
वहाँ अनन्तानुबन्धीरूप रागादिकके तथा मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अनुद्रेकको प्रशम कहते हैं । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव इन