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३२ : जैन तर्कशास में अनुमान-विचार प्रमाणशास्त्रके मूर्धन्य ग्रन्थोंमें परिगणित है । हरिभद्र के शास्त्रवार्तासमुच्चय, अनेकान्त-जयपताका आदि ग्रन्थोंमें अनुमान-चर्चा निहित है । विद्यानन्दने अष्टसहस्री, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा जैसे दर्शन एवं न्याय-प्रबन्धोंको रचकर जैन न्यायवाड्मयको समृद्ध किया है। माणिक्यनन्दिका परीक्षामुख, प्रभाचन्द्रका प्रमेयकमलमार्तण्ड-न्यायकुमुदचन्द्र-युगल, अभयदेवको सन्मतितर्कटीका, देवसूरिका प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, अनन्तवीर्यकी सिद्धिविनिश्चयटीका, वादिराजका गायविनिश्चयविवरण, लघु अनन्तवीर्यको प्रमेयरत्नमाला, हेमचन्द्रको प्रमाणमीमांसा, धर्मभूषणको न्यायदीपिका और यशोविजयको जैन तर्कभाषा जैन अनुमानके विवेचक प्रमाणग्रन्थ हैं।