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अनुमानका विकास-क्रम : २१
साधन ( परार्थानुमान ) के पक्ष, हेतु और दृष्टान्त तीन अवयव, हेतुके पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व और विपक्षासत्व तीन रूप, पक्ष, सपक्ष और विपक्षके लक्षण तथा पक्षलक्षणमें प्रत्यक्षाद्यविरुद्ध विशेषणका प्रवेश, जो प्रशस्तपादके अनुसरणका सूचक है, नवविध पक्षाभास, तीन हेत्वाभास और उनके प्रभेद, द्विविध दृष्टान्ताभास और प्रत्येकके पांच-पाँच भेद, प्रत्यक्ष और अनुमानके भेदसे द्विविध प्रमाण, लिंगसे होने वाले अर्थ ( अनुमेय ) दर्शनको अनुमान; हेत्वाभासपूर्वक होनेवाले ज्ञानको अनुमानाभास, दूषण और दूषणाभास आदि अनुमानोपयोगी तत्त्वोंका स्पष्ट निरूपण करके बौद्ध तर्कशास्त्रको अत्यधिक पुष्ट तथा पल्लवित किया गया है। इसी प्रयोजनको पुष्ट और बढ़ावा देनेके लिए दिङनागने न्यायद्वार, प्रमाणसमुच्चय सवृत्ति, हेतुचक्रसमर्थन आदि ग्रन्थोंकी रचना करके उनमें प्रमाणका विशेषतथा अनुमानका विचार किया है।
धर्मकीर्तिने प्रयाणसमुच्चयपर अपना प्रमाणवातिक लिखा है, जो उद्योतकरके न्यायवातिककी तरह व्याख्येय ग्रन्थसे भी अधिक महत्त्वपूर्ण और यशस्वी हुआ। इन्होंने हेतुबिन्दु, न्यायबिन्दु आदि स्वतन्त्र प्रकरण-ग्रन्थोंकी भी रचना की है और जिनसे बौद्ध तर्कशास्त्र न केवल समृद्ध हुआ, अपितु अनेक उपलब्धियाँ भी उसे प्राप्त हुई हैं। न्यायबिन्दुमें अनुमानका लक्षण और उसके द्विविध भेद तो न्यायप्रवेश प्रतिपादित ही है । पर अनुमानके अवयव धर्मकीर्तिने तीन न मानकर हेतु और दृष्टान्त ये दो अथवा केवल एक हेतु ही माना है । हेतुके तीन भेद ( स्वभाव, कार्य और अनुपलब्धि ), अविनाभावनियामक तादात्म्य और तदुत्पत्तिसम्बन्धद्वय, ग्यारह अनुपलब्धियाँ आदि चिन्तन धर्मकोतिकी देन है। इन्होंने जहाँ दिङ्नागके विचारोंका समर्थन किया है वहाँ उनको कई मान्यताओंकी आलोचना भी की है। दिङ्नागने विरुद्ध हेत्वाभासके भेदोंमें इष्टविघातकृत् नामक तृतीय विरुद्ध हेत्वाभात, अनेकान्तिकभेदोंमें विरुद्धाव्यभिचारी और साधनावयवोंमें दृष्टान्तको स्वीकार किया है। धर्मकीतिने न्यायाबिन्दु में इन तीनोंको समीक्षा की है।" इनकी विचार-धाराको
१. पं० दलनुखभाई मालवणिया, धर्मोत्तर-प्रदीप, प्रस्ताव० पृष्ठ ४१ । २ धमोंत्तरप्रदोप, प्रस्तावना, पृष्ठ ४४ । ३. अथवा तस्यंत्र साधनस्य यन्नाड्गं प्रतिशोपनयनिगमनादि..."
-राहुल सांकृत्यायन, वादन्या० पृष्ठ ६१।। ४. धमकी ति, न्याबिन्दु तृतीय परि० पृष्ठ ९१ । ५. (क) तत्र च तृतीयोऽपीष्टविधातद्विरुद्धः। स इह करमान्नोक्तः । अनयोरेवान्तर्भावात् । (ख) विरुद्धाव्यभिचार्याप संशयहेतु रुक्तः । स इह कस्मान्नोक्तः। अनुमानविषयेऽ.
सम्भवात् । (ग) त्रिरूपो हेतुरुक्तः । तावतैवार्थप्रतीतिरिति न पृथग्दृष्टान्तो नाम साधनावयवः
कश्चित् । -न्यायबि० पृष्ठ ७६-८०, ८६,९१ ।