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२५४ : जैन तर्कशासमें अनुमान-विचार कपन जरूरी है। दूसरी बात यह है कि जब अनुमानको आत्मप्रत्यायन और सापनको परप्रत्यायनका कारण कहा जाता है तो सुतरां अनुमानपदसे स्वार्थानुमान और साधनपदसे परार्थानुमानका ग्रहण अभीष्ट है। ___ सांख्य, मीमांसा और वेदान्त दर्शनोंमें भी अनुमानदोषोंपर विचार उपलब्ध है, पर वह नहीं के बराबर है। अतएव उसपर यहाँ विमर्श नहीं किया-प्रथम अध्यायमें कुछ किया गया है।