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२४२ : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान विचार निगमनका प्रयोग करना। यथा-धूमवाला होनेसे अग्निवाला है (निगमन), और यह घूमवाला है ( उपनय )। ____ माणिक्यनन्दिने उक्त प्रकारके प्रयोगोंको बालप्रयोगाभास इसलिए बतलाया है क्योंकि जिस प्रतिपाद्यने अमुक संख्यक अवयवोंसे साध्यार्थप्रतिपत्तिका संकेत ग्रहण कर रखा है उसके लिए उतने संख्यक अवयवोंका प्रयोग न कर कम प्रयोग अथवा क्रमभंग कर प्रयोग करनेसे उसे प्रकृतार्थको स्पष्टतासे प्रतिपत्ति नहीं हो सकती।
प्रश्न है कि जब मन्दप्रज्ञोंके लिए कम-से-कम तीन और अधिक-से-अधिक पांच अवयव अपेक्षणीय है तो उनके आभास भी कम-से-कम तीन और अधिकसे-अधिक पांच होना चाहिए। किन्तु उपर्युक्त विवेचनमें पक्षाभास, हेत्वाभास और दृष्टान्ताभास इन तोन अवयवाभासोंका तो कथन उपलब्ध है, पर उपनयाभास और निगमनाभास इन दोका नहीं, यह विचारणीय है ?
हमारा विचार है कि हेतूको आवत्तिको उपनय और प्रतिज्ञाके उपसंहारको निगमन कहा गया है । अतः हेतुदोषोंके अभिधानसे उपनयाभास और पक्षदोषोंके कथनसे निगमनाभास प्रतिपादित हो जाते हैं। दूसरे, बालप्रयोगाभासके अन्तर्गत जो चतुथ विपरीतावयव प्रयोगाभास अभिहित है उसका अर्थ उपनपाभास तथा निगमनाभास है, क्योंकि उपनयके स्थानमें उपनयका और निगमनके स्थानमें निगमनका प्रयोग न कर विपरीत अर्थात् निगमन और उपनयका उचितानपूर्वीका उल्लंघन करके प्रयोग करना ही निगमनाभास तथा उपनयाभास है। जैसाकि चारुकीतिके २ मन्तव्यसे प्रकट है । जैन तर्कग्रन्थोंमें उनका स्पष्ट प्रतिपादन खोजते हुए वह भी हमें देवमूरिके प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकारमें उपलब्ध हो गया। देवसूरिने उक्त पक्षाभासादिके अतिरिक्त उपनयाभास और निगमनाभासका भी एकएक सूत्रद्वारा स्वरूप-निर्देश किया है। देवसूरि-प्रतिपादित अनुमानाभास :
देवसूरिका भी अनुमानाभासप्रतिपादन उल्लेखनीय है। उन्होंने पक्षा
१. स्पष्टतया प्रकृतार्थप्रतिपत्तेरयोगात् ।
-परी०६५०। २. उपनयानन्तरं निगमनप्रयोगे कर्त्तव्ये निगमनानन्तरमुपनयप्रयोगोऽप्याभास एव उचितानु
पूरिकत्वाभावादित्यर्थः ।
-प्रमेयरत्नालं. ६।४९, पृ० २०० । ३. प्र० न० त०६।८१,८२, पृ० १२३६-१२४० । ४. पक्षाभासादिसमुत्थं शानमनुमानामासमिति ।
न००६।३७, पृ०१००७ ।