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अध्याय : ३ :
प्रथम परिच्छेद अनुमानाभास -विमर्श
जैन तर्क ग्रन्थों में अनुमान-सम्बन्धी दोषोंपर जो चिन्तन उपलब्ध है वह महत्त्वपूर्ण, दिलचस्प और ध्यातव्य है । यहाँ उसपर विचार किया जाता है ।
समन्तभद्रद्वारा निर्दिष्ट अनुमान - दोष :
समन्तभद्रने अनुमानदोषोंपर यद्यपि स्वतन्त्रभावसे कुछ नहीं लिखा, तथापि एकान्तवादोंकी समीक्षाके सन्दर्भ में उन्होंने कतिपय अनुमान दोषोंका उल्लेख किया है । उनसे अवगत होता है कि समन्तभद्र उन दोषोंसे परिचित हो नहीं, उनके विशेषज्ञ थे । उदाहरणार्थ उनका यहाँ एक स्थल उपस्थित किया जाता है । विज्ञानाद्वैत समीक्षा करते हुए वे उसमें दोष-प्रदर्शन करते हैं । लिखते हैं' कि 'विज्ञप्तिमाताकी सिद्धि यदि साध्य और साधनके ज्ञानसे की जाती है तो अद्वैतकी स्वीकृतिके कारण न साध्य सम्भव है और न हेतु; अन्यथा प्रतिज्ञादोष और हेतुदोष प्राप्त होंगे ।' समन्तभद्र के इस दोषापादनसे स्पष्ट है कि वे प्रतिज्ञादोष और हेतुदोष जैसे अनुमानदोषोंसे सुपरिचित थे और वे उन्हें मानते थे । तथा इन दोषोंद्वारा एकान्तवादसाधक अनुमानोंको दूषित अनुमान ( अनुमानाभास ) बतलाते थे । अतः समन्तभद्रके उक्त प्रतिपादनपरसे इतना तो कहा ही जा सकता है कि उन्हें प्रतिज्ञादोष ( प्रतिज्ञाभास - पक्षाभास) और हेतुदोष ( हेत्वाभास ) ये दो प्रकारके अनुमाना
१. साध्यसाधनविशप्तेर्याद विज्ञप्तिमात्रता ।
न साध्यं न च हेतुश्च प्रतिज्ञाहेतुदोषतः ॥ -आप्तमी० का० ८० ।