________________
१९४ : जैग तकशास्त्र में अनुमान-विचार सप्तलक्षण :
जैन तार्किक वादिराजने' न्यायविनिश्चयविवरणमें हेतुकी एक सप्तलक्षण मान्यताका भी सूचन करके उसकी समीक्षा की है। उनके अनुसार सप्तलक्षण इस प्रकार है-(१) अन्यथानुपपन्नत्व, (२) ज्ञातत्व, ( ३ ) अबाधितविषयत्व, ( ४ ) असत्प्रतिपक्षत्व और (५-७) पक्षधर्मत्वादि तीन । पर यह मान्यता किसकी है, यह उन्होंने नहीं बतलाया और न अन्य साधनोंसे ज्ञात हो सका। जैन ताकिकों द्वारा स्वीकृत हेतुका एकलक्षण : अन्य लक्षण-समीक्षा :
जैन विचारकोंने हेतुका स्वरूप एकलक्षण स्वीकार किया है, जो अविनाभाव या अन्यथानुपपत्तिरूप है और जिसकी मीमांसा उद्योतकर ( ई० ६०० ) तथा शान्तरक्षित( ई० ७०५-७६३ ) ने की है। उसका मूल स्वामी समन्तभद्रको आप्तमीमांसागत 'अविरोधतः'४ पदमें सन्निहित है। उनके व्याख्याकार अकलङ्कदेवने उसे 'एकलक्षण' हेतुका प्रतिपादक कहा है। विद्यानन्दने भी उसे हेतुलक्षण-प्रकाशक बतलाया है।
समन्तभद्रके पश्चात् पात्रस्वामीनं स्पष्टतया हेतुका लक्षण एकमात्र 'अन्यथानुपपन्नत्व' ( अविनाभाव ) प्रतिपादित किया और रूप्यको समीक्षा की है, जिसका विस्तृत उद्धरण पात्रस्वामीके मतके रूपमें शान्तरक्षितने तत्त्वसंग्रहमें उप
१. अन्यथानुपपन्नत्वादिभिश्चतुर्भिः पक्षधर्मत्वादिभिश्च सप्तलक्षणो हेतुरिति त्रयेणेति किम्
-न्यायवि० वि० २।१५५, पृ० १७८-१८० । २. ( क ) एतेन तादृगविनाभाविधर्मोपदर्शनं हेतुरिति प्रत्युक्तम् ।
-न्यायवा० ११५, पृ० ५५ । (ख ) तादृगविनाभाविधर्मोपदर्शनं हेतुरित्यपरे तादृशा विना न भवति ।
-वही, ११११३५, पृ० १३१ । ३. तत्वसं० का० १३६४.१३७६ । ४. सधर्मणैव साध्यस्य साधादविरोधतः ।
-आप्तमी० का० १०६ । ५. सपक्षेणैव साध्यस्य साधादित्यनेन हेतोस्त्रलक्षण्यम्, अविरोधादित्यन्यथानुपपति च
दर्शयता केवलस्य त्रिलक्षणस्यासाधनत्वमुक्तं तत्पुत्रत्वादिवत् । एकलक्षणस्य तु गमकत्वं .."इति बहुलमन्यथानुपपत्तेरेव समाश्रयणात् ।
-अष्टश० अष्टस० पृ० २८९, आ० मी० का० १०६ । ६. भगवन्तो हि हेतुलक्षणमेव प्रकाशयन्ति ।
-बष्टस० पृ० २८९, मा० मी० का० १०६ । ७. तत्वसं० का० १३६४-१३७६ ।