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१८८ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान - विचार
उसी तरह दिगम्बर जैन तार्किकोंने भो पक्षादि दोषोंका परिहार साध्याविनाभावी हेतु प्रयोग और प्रत्यक्षाद्यविरुद्ध पक्ष ( साध्य ) के प्रयोग द्वारा ही हो जानेसे उन्हें स्वीकार नहीं किया ।
ध्यातव्य है कि हेमचन्द्रने' स्वार्थानुमान के प्रकरण में साधन, पक्ष और दृष्टान्त का तथा परार्थानुमानके निरूपणावसरपर प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमनका कथन किया है । प्रतीत होता है कि उनका यह प्रतिपादन ज्ञानात्मक स्वार्थानुमान एवं परार्थानुमानके अङ्गों और शब्दात्मक परार्थानुमान के अवयवोंके विभाजनको दृष्टिसे हुआ है । पर माणिक्यनन्दि और उनके अनुगामी प्रभाचन्द्र, अनन्तवीर्य ४, देवसूरि" आदिने ऐसा पृथक निरूपण नहीं किया। उन्होंने मात्र सामान्य अनुमानके अवयवोंका कथन किया है, शब्दात्मक परार्थानुमानके पाँच अवयवोंका नहीं । इसे आचार्योंकी एक विवक्षाधीन निरूपण-पद्धति ही समझना चाहिए ।
१. प्र० मी० ११२ १०, १३, २०-२३, २ १ ११, १२, १३, १४, १५ । २. परीक्षागु० ३।३७ ।
३. प्रमेयक० मा० ३।३७, ३।५२ का उत्थानिका वाक्य पृ० ३७७ ।
४. प्रमेयर० मा० ३।३३, पृ० १६५ तथा ३।४३, ४४, ४५, ४६, ४७ और ४८ की
उत्थानि० ।
५. प्र० न० त० ३।२८, ४३-४८ |