________________
११० : जैन तर्कशास्त्रमें भनुमान-विचार दोनों व्याख्याओंको अपनाते हुए तीन व्याख्याएँ और प्रस्तुत की हैं और इस तरह उद्योतकरने 'त्रिविधम्' पदकी छह व्याख्याएँ उपस्थित की हैं। उन्होंने सूत्रोक्त 'च' शब्दसे चतुर्लक्षण और पञ्चलक्षण अनुमानोंका भी संग्रह करनेकी सूचना की है। साथ ही 'त्रिविधम्'को नियमार्थक ( तीन ही है, ऐसा ) मानकर अन्य विभिन्न अनुमानोंका पूर्ववत् आदि तीन अनुमानोंमें ही संग्रह करनेका संकेत किया है । तथा उन अनेक प्रकारके अनुमानों ( ३, ५, १५, ६० और अनन्त ) का दिशाबोध कराया है। स्मरणीय है कि उद्योतकरने४ वीत और अवीतके भेदसे दो प्रकारके अनमानोंका भी निर्देश किया है। वाचस्पतिमिश्रने न्यायभाष्य और न्यायवात्तिकका विशदीकरण किया है।
जयन्त भट्टने" अवश्य एक नयी परम्परा स्थापित की है। न्यायमंजरीमें उन्होंने प्रशस्तपादोक्त स्वार्थ और परार्थ द्विविध अनुमानोंका कथन किया है, जिसका न्यायदर्शनमें अभीतक प्रवेश नहीं हो सका था। इसके बाद केशवमिश्रने तो बहुत हो स्पष्टतया अनुमानके यही दो भेद वणित किये हैं। उन्होंने न पूर्ववत् आदि तीनका और न केवलान्वयी आदि तीनका निरूपण किया है। हाँ, केवलान्वयो आदिको हेतुभेदोंमें प्रदर्शित किया है । वास्तवमें पूर्ववत् आदि और केवलान्वयी आदि हेतुभेद ही हैं। कारणमें कार्यका उपचार करके उन्हें अनुमान कहा गया जान पड़ता है। विश्वनाथने अनुमानके पूर्ववत् आदि भेद न कहकर उद्योतकरोपज्ञ केवलान्वयो आदि त्रिविध भेदोंका प्रतिपादन किया है। गङ्गेश उपाध्यायने भी तत्त्वचिन्तामणिमें उद्योतकरका अनुगमन किया है और पूर्ववत् आदि न्यायसूत्रीय त्रिविध अनुमान-परम्पराको छोड़ दिया है। अन्नम्भट्टको तर्कसंग्रहमें
१. चशब्दात् प्रत्यक्षागमाविरुद्धं चेत्येवं चतुलक्षणं पञ्चलक्षणमनुमानमिति ।
न्या. वा०, १११।५, पृ० ४६ । २,३. अथवा त्रिविधामांत नियमार्थ अनेकधा भिन्नस्यानुमानस्य त्रिविधेन पूर्ववदादिना संग्रह इति नियमं दशति ।
-वही, ११११५, पृ० ४६ । ४. वही, १११॥३५, पृ० १२३-१२५। . ५. न्या० मं० पृ० १३०-१३१ । ६. तर्कभा० पृ० ७९-८० । ७. त्रैविध्यमनुमानस्य केवलान्वयिभेदतः ।
त्रैविध्यमिति । अनुमानं हि त्रिविधं केवलान्वयि-केवलव्यतिरेक्यन्वयव्यतिरेकिभेदात् ।
-सि० मु० का० १४२, पृ० १२५ । ८. तच्चानुमानं त्रिविधं केवलान्वयिकेवलव्यतिरेक्यन्वयव्यतिरेकिभेदात् ।
-तत्त्वचि० जागदीशी, पृ० ७९५ ।। ६. तर्कसं० पृ० ५७-५९ ।