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जैन स्वाध्यायमाला
भुजमाणं विवज्जिज्जा, भत्त - सेस पडिच्छए । ३६ सिया य समट्टाए, गुव्विणी कालमासिणी । उट्टिश्रा वा निसोईज्जा, निसन्ना वा पुणुट्ठए |४०| त भवे भत्तपाण तु, संजयाण अकप्पिय । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" । ४१॥ थणगं पिज्जमाणी, दारगं वा कुमारियं । तं निक्खिवित्तु रोयंतं, आहारे पाणभोयणं ॥ ४२ ॥ तं भत्रे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस " |४३| जं भवे भत्तपाण तु, कप्पाकप्पम्मि सकियं । दितिय पडियाइक्खे " न मे कप्पइ तारिसं” | ४४ | दग-वारेण पिहियं, नीसाए पीढएण वा । लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण व केणइ ॥४५॥ तच उभिदिया दिज्जा, समणट्टाए व दावए । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" | ४६ | असणं पाणग वा वि, खाइम साइम तहा । जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, "दाणट्ठा पगडं इमं । ४७ । त भवे भत्तपाणं तु, सजयाण अकप्पिय । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" | ४८ | श्रमण पाणग वा वि, खाइमं साइमं तहा ।
जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, "पुण्णट्ठा पगडं इमं ॥४६॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ।
दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" 1५०|