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जैन स्वाध्यायमाला
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जो जीवे वि न याणेइ, अजीवे वि न याणइ । जीवाजीवे अयाणतो, कहं सो नाहीइ संजम ? | १२ | जो जीवे विवियाणेइ, प्रजीवे वि वियाणइ । जीवाजीवे वियाणतो, सो हु नाहिइ सजम | १३ | जया जीवमजीवे य, दोवि एए वियाणइ । तया गइ बहुविह, सव्वजीवाण जाणइ | १४| जया गइ बहुविह, सव्वजीवाण जाणइ । तया पुण्ण च पावं च बधं मुक्खं च जाणइ । १५ । जया पुण्ण च पावं च, बंधं मुक्ख च जाणइ । तया निव्विदए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे |१६| जया निव्विदए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे । तया चयइ सजोगं, सभितर बाहिर |१७| जया चयइ सजोगं, सभितर बाहिर । तया मुडे भवित्ताणं, पव्वइए अणगारिय |१८| जया मुडे भवित्ताणं, पव्वइए अणगारय । तया संवरमुक्किट्ठ, धम्मं फासे अणुत्तरं |१६| जया सवरमुक्किट्ठ, धम्म फासे अणुत्तरं । तया धुणइ कम्मरय, प्रबोहि-कलुसकड | २० | जया धुणइ कम्म-रय, अबोहि-कलु संकड | तथा सव्वत्तग नाणं, दसणं चाभिगच्छइ । २१| जया सव्वत्तग नाणं, दमणं चाभिगच्छइ । तया लोगमलोग च, जिणो जाणइ केवली २२| जया लोगमलोग च, जिणी जाणइ केवली 1