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जैन स्वाध्यायमाला
पत्थर ठोकर खात है, करडाइ के तान ।१३। अवगन उर धरिये नही, जो होवे वक्ष बबल । गण लीजे 'काल' कहे नही छाया मे शूल ।१४। जैसी जापे वस्तु है, वैसी दे दिखलाय । वाका बुरा न मानिये, वो लेन कहा से जाय ।१५। गुरु कारीगर सारीखा टाची वचन विचार । पत्थर से प्रतिमा करे, पूजा लहे अपार ।१६। सतन को सेवा कियां, प्रभु रीझत है आप । जाका बाल खिलाइये ताका रीझत बाप ।१७। भवसागर ससार मे, दीपा श्रीजिनराज । उद्यम करी पहोचे तीरे, बैठी धर्म जहाज ।१८। निज आतम को दमन कर, पर आतम को चीन । परमातम को भजन कर, सोही मत परवीन ।१६। समझ शके पाप से, अणसमझ हरपत ।। वे लखा वे चीकणा, इण विध कर्म बधत ।२०। समझ सार ससार मे, समझू टाले दोष । समझ समझ कर जीवडा, गया अनता मोक्ष ।२१॥ उपशम विषय कषाय नो, सवर तीनो योग । किरिया जतन विवेक से, मिटे कुकर्म दुख रोग ।२२। रोग मिटे समता वधे, समकित व्रत पाराध । निर्वेरी सब जीव को, पामे मुक्ति समाघ १२३।
।। इति भूल चूक मिच्छामि दुक्कड ।।