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बृहदालोयणा
विन दिया छूटे नहीं, यह निश्चय कर मान । हँस हँस के क्यु ख रचिये, दाम बिराना जान १२॥ जीव हिंसा करता थका, लागे मिष्ट अज्ञान । ज्ञानी इम जाने सही, विप मिलियो पकवान ।। काम भोग प्यारा लगे, फल किम्पाक समान । मीठी खाज खुजावता, पीछे दुख की खान ।४। जप तप संजम दोहिलो, औषध कडवी जान । सुख कारण पीछे घणो, निश्चय पद निर्वाण ।५। डाभ अणी जल विदुवो, सुख विषयन को चाव । भवसागर दुख जल भरयो, यह ससार स्वभाव ।६।। चढ उत्तग जहा से पतन, शिखर नही वो कप। जिम सुख भीतर दुख बसे, सो सुख भी दुख रूप ७) जब लग जिसके पुण्य का, पहोचे नहीं करार । तव लग उसको माफ है, अवगुण करे हजार।। पुण्य क्षीण जब होत है, उदय होत है पाप । दाजे बन की लाकडी, प्रजले आपोप्राप ।। पाप छिपाया ना छिपे, छिपे तो मोटा भाग। दावी दुवी ना रहे, रुई पलेटी आग ।१०। वह वीती थोडी रही, अव तो सुरत सभार । पर भव निश्चय जावनो, वृथा जन्म मत हार ।११ चार कोस नामान्तरे, खरची वाधे लार । परभव निश्चय जावणो, करिये धर्म विचार 1१२॥ रज विरज ऊँची गई, नरमाइ के पान ।