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नन्दीसूत्र-उपसहार
न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए सासए, अक्खए, अव्वए अवट्ठिए, निच्चे । से समासो चउन्विहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्वरो, खित्तयो, कालो भावयो । तत्थ दव्वनो णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदम्वाइ जाणइ पासइ, खित्तमओ ण सुयनाणी उवउत्ते सव्व खेत्त जाणइ पासइ, कालो ण सुयनाणी उवउत्ते सव्व कालं जाणइ पासइ, भावग्रोण सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ। सूत्र-५६ अक्खर सन्नी सम्म, साइयं खलु सपज्जवसियं च ।
गमिय अगपविठं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ।६३।
आगमसत्थरगहण, ज बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिछ । विति सुयनाणलभं, तं पुत्वविसारया धीरा ।९४ सुस्सूसइ पडिपुच्छइ, सुणेइ गिण्हइ य, ईहए याऽवि ! तत्तो अपोहए वा, धारेइ करेइ वा सम्म १९५॥ मूग्र हुंकार वा, बाढक्कार पडिपुच्छ वीमंसा । तत्तो पसंगपारायण च, परिणि? सत्तमए ।९६। सुत्तत्यो खलु पढमो, वीनो निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ।
तइयो य निरवसेसो, एस विही होइ अणुनोगे १९७। से तं अगपविट्ठ से त सुयनाण। से तं परोक्खनाण। से तं नंदी।
॥ नंदीसुत्तं समत्तं ॥