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जैन स्वाध्यायमाला
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तण धारेइ सखिज्ज वा कालं, असखिज्ज वा काल । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्त सद्द सुणिज्जा, तेण सद्दीत्ति उग्गहिए, नो चेव ण जाणइ के वेस सद्दाइ, तओ ईह पविसइ, तो जाणइ - अमुगे एस सद्दे, तो ण अवाय पविसइ, तत्रो से उवगय हवइ, तो धारण पविसइ, तम्रो णं धारेइ सखेज्ज वा कालं असंखेज्ज वा काल । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं ख्व पासिज्जा, तेण रूवत्ति उग्गहिए, नो चेवण जाणइ के वेस रूवत्ति, तो ईह पविसइ, तो जाणइ - अमुगे एस रूवेत्ति, तनो अवायं पविसइ, तनो से उवगय हवइ, तओ धारण पविसइ, तो ण धारेइ सखेज्ज वा कालं, प्रसखेज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे श्रव्वत्त गधं प्रग्धाइज्जा तेण गंधत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस गधेत्ति, तो ईह पविसइ, तमो जाणइ अमुगे एस गंधे, तो अवाय पविसइ, तस्रो से उवगय हवइ, तो धारणं पविसइ, तो ण धारेइ सखेज्ज वा कालं असखेज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रस आसाइज्जा, तेण रसोत्ति उगहिए, नो चेव ण जाणइ के वेस रसोत्ति । तो ईहं पविमइ, तो जाणइ - प्रमुगे एस रसे, तत्रा अवायं पविसइ, तो से उवगय हवइ, तो धारण पविसइ, तो ण धारेइ सखिज्ज वा कालं अस खिज्ज वा कालं । से नहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं फास पडिसवेइज्जा तेण फासेत्ति उग्गहिए, नो चेव ण जाणइ के वेस फासोत्ति, तो ईहं पविसइ, तो जाणइ - अमुगे एस फासे, तम्रो अवाय पविसइ, तो से उवगय हवइ, तो धारण पविसइ, तो ण धारेइ
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