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जैन स्वाध्यायमाला
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गंधाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निभोगे । वए वियोगे य कह सुहं से, सभोगकाले य अतित्तलामे ।५४॥ गधे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुद्धिं ।। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ।५५॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, गधे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुस वड्डइ लोभदोसा, तत्यावि दुक्खा न विमुच्चई से।५६। मोसस्स पच्छा य पुरत्थरो य, पोगकाले य दुही दुरते । एव अदत्ताणि समाययंतो, गधे अतित्तो दुहियो अणिस्सो ।५७) गधाणुरत्तस्स नरस्स एव, कत्तो सुह होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्ख ।५८॥ एमेव गधम्मि गयो पोस, उवेइ दुक्खोहपरपरायो। पदुकृचित्तो य चिणाइ कम्म, ज से पुणो होइ दुह विवागे ।५९। गधे विरत्तो मणुप्रो विसोगो, एएण दुक्खोहपरपरेण । न लिप्पई भवमझेवि सतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं १६०। जिब्भाए रस गहण वयति, त रागहेउ तु मणुन्नमाहु । त दोसहेउ अमणुन्नमाहु, ममो य जो तेसु स वीयरागो ।६१। रसस्स जिव्भ गहण वयंति, जिब्भाए रस गहण वयंति । रागस्स हेउ समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।६२॥ रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्व, अकालिय पावइ से विणास । रागाउरे बडिस विभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ।६३। जे यावि दोस समुवेइ तिव्व, तसि वखणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दतदोसेण सएण जतू, न किंचि रस अवरुज्झई से 1६४। एगतरत्ते रुइरसि रसे, अतालिसे से कुणई परोस ।