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उत्तराध्ययन सूत्र अ २२
इहागच्छउकुमारो, जा से कन्नं ददामि हं | ८ | सव्वासही हिं हविप्रो, कय- कोउय मंगलो | दिव्वजुयल-परिहियो, ग्राभरणेहि विभूसि || मत्तं च गधहत्थि, वासुदेवस्स जेट्टगं । आरूढो सोहए अहिय, मिरे चूडामणी जहा | १० | ग्रह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिए | दसारचक्केण य सो, सव्वग्रो परिवारियो |११| चउरगिणीए सेणाए, रइयाए जहक्कम | तुरियाण सन्निनाएण, दिव्वेणं गगणं फुसे |१२| एयारिसाए इड्डिए, जुत्तीए उत्तमाइ य । नियगाग्रो भवणाओ, निज्जाश्रो वहिपुगवो |१३| ग्रह सो तत्थ निज्जतो, दिस्स प्राणे भयदुए । वाडेहि पंजरे हि च, सन्निरुद्धे सुदुक्खिए | १४ | जीवियंत तु सम्पत्ते, मंसट्ठा भक्खियव्वए । पासित्ता से महापन्ने, सारहि इणमव्ववी ॥१५॥ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सव्वे सुहेसिणो । वाडेहि पंजरेह च सन्निरुद्धा य ग्रच्छहिं |१६| अह सारही तो भणई, एए महा उ पाणिणो । तुज्झ विवाह कज्जम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ॥ १७॥ सोऊण तस्सवयणं, वहु-पाणि-विणासणं । चितेइ से महापन्ने, साणुक्कोसे जिए हिऊ |१८| जइ मज्झ कारणा एए, हम्मति सुबहू जिया । न मे एय तु निस्सेस, परलोगे भविस्सई | १६ |