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जन स्वाध्यायमाला
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मेत्तिज्जमाणो भयई, सुयं लद्धं न मज्जई ॥११॥ न य पाव-परिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पई। ' अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई ॥१२॥ कलह-डमर-वज्जिए, बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिसलीणे, सुविणीएत्ति वुच्चई ॥१३॥ वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवं । पियकरे पियंवाई, से सिक्खं लद्ध मरिहई ।१४। जहा संखम्मि पयं निहियं, दुहनो वि विरायइ । एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥१५॥ जहा से कम्बोयाणं, पाइण्णे कथए सिया । आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ।१६। जहा इण्णसमारूढे, सूरे दढपरक्कमे । उभो नंदिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सुए ।१७। जहा करेणुपरिकिण्णे, कुजरे सट्ठिहायणे। बलवते अप्पडिहए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥१८॥ जहा से तिखसिंगे, जायखधे विरायई। वसहे जूहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ।१६। जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए।२०॥ जहा से वासुदेवे, संख-चक्क-गदा-धरे । अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए।२१॥ जहा से चाउरते, चक्कवट्टी-महिड्डिए । चोद्दसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ।२२।