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उत्तराध्ययन सूत्र अ. ७
तम्हा सव्व-दिसं पस्सं, अप्पमत्तो परिव्वए ।१३। बहिया उड्डमादाय, नावकखे कयाइवि । पुव्व-कम्म-क्खय-ट्ठाए, इमं देह समुद्धरे ।१४। विविच्च कम्मुणो हेडं, कालकंखी परिव्वए । मायं पिंडस्स पाणस्स, कड लभ्रूण भक्खए ।१५॥ सन्निहिं च न कुविज्जा, लेव-मायाए संजए। पक्खीपत्तं समादाय, निरवेक्खो परिव्वए ।१६। एसणा-समियो लज्ज, गामे अणियनो चरे ।
अप्पमत्तो पमत्तेहि, पिण्ड-वायं गवेसए ।१७। एवं से उदाहु अणुत्तर-नाणी अणुत्तर-दसी अणुत्तर-नाण-दसण-धरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए ॥१८॥
॥ खुड्डागनियठिज्ज छठ्ठ अज्झयण समत्त ॥ ६॥
। एलयं सत्तमं अज्झयणं ॥७॥ जहाएसं समुद्दिस्स, कोइ पोसेज्ज एलयं । प्रोयणं जवसं देज्जा, पोसेज्जावि सयगणे ।१। तो से पुढे परिवूढे, जायमेए महोयरे । पीणिए विउले देहे, आएसं परिकंखए ।२। जाव न एड पाएसे, ताव जीवइ से दुही। अह पत्तम्मि आएमे, सीसं छेतूण भुज्जई ।३। जहा से खलु उरव्भे, पाएसाए समीहिए । एवं वाले अहम्मिठे, ईहई नरयाउय ।४। हिंसे बाले मुसावाई, श्रद्धाणमि विलोवए ।