SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १-न्याय ४-नय अधिकार - पदार्थ के स्वरूप में न होकर उनके वाचक शब्दों के प्रति होता है, इसलिये तीनों शब्द नय या व्यञ्जन नय कहलाते हैं। २३. सातों में स्थल व सूक्ष्म विषय ग्राहकता दर्शाओ। सामान्य ग्राहक होन से नैगमादि तीन द्रव्याथिक नय स्थूल हैं और विशेष ग्राहक होने से ऋजू आदि चार पर्यायाथिक नय सूक्ष्म । पर्यायाथिक चारों में भी पदार्थ ग्राहक होने से ऋजु सूत्र स्थूल है और वाचक शब्द ग्राहक होने से शब्दादि तीन सूक्ष्म । द्रव्याथिक में भी भेद व अभेद दोनों को ग्रहण करने से नैगम स्थूल है, उसमें जाति भेद करने से संग्रह नय उसकी अपेक्षा सूक्ष्म और उसमें भी विधि पूर्वक भेद करने से व्यवहार नय उससे भी सूक्ष्म है । वर्तमान पर्याय मात्र ग्राही होने से ऋजुसूत्र उससे भी सूक्ष्म है । व्यञ्जन नयों में शब्द नय ऋजुसूत्र से सूक्ष्म है क्योंकि लिंगादि के भेद से उसके विषय में भी भेद कर देती है। एक-एक लिंगादि में उत्तर भेद करने से समभिरूढ उससे सक्ष्म और क्रिया व परिणति की अपेक्षा भेद कर देने से एवंभूत सबसे सूक्ष्म है। (२४) व्यवहार नय या उपनय के कितने भेद हैं ? तीन है-सद्भूत व्यवहार नय, असद्भुत व्यवहार नय तथा उप चरित व्यवहार नय (अथवा उपचरित असद्भूत व्यवहार नय)। । असद्भूत व्यवहार नय किसे कहते हैं ? एक अखण्ड द्रव्य को भेद रूप विषय करने वाले ज्ञान को सद्भूत व्यवहार नय कहते हैं, जैसे जीव के केवलज्ञानादि व गति ज्ञानादि गुण हैं। (२६) असमत व्यवहार नय किसे कहते हैं ? भिन्न पदार्थों को जो अभेदरूप ग्रहण करे, जैसे-यह शरीर मेरा है अथवा मिट्टी के घड़े को घी का घड़ा कहना। (२७) उपचरित असद्भुत व्यवहार नय किसे कहते हैं ? अत्यन्त भिन्न पदार्थों को जो अभेद रूप ग्रहण करे, जैसे-हाथी, .... घोड़ा, महल, मकान मेरे हैं, इत्यादि। .... (२५) असा
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy