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८-नय-प्रमाण
३-नय अधिकार शुद्ध व्यवहार-अशुद्ध व्यवहार; सूक्ष्म ऋजु सूत्र-स्थूल ऋजु सूत्र; ऋजुसूत्र-शब्दनय; शब्दनय-समभिरूढ़नय; समभिरूढ़-एवंभूत; भावी नैगम-वर्तमान नैगम; शुद्ध निश्चय-अशुद्ध निश्चय; निश्चयनय-सद्भूत व्यवहारनय; शुद्ध सद्भूत व्यवहार-अशुद्ध सद्भूत व्यवहार; उपचरित असद्भूत-अनुपचरित असद्भूत; शुद्ध द्रव्यार्थिक-अशुद्ध द्रव्याथिक; शुद्ध पर्यायाथिक-अशुद्ध
पर्यायाथिक । १८. निम्न वाक्य किस-किस नय के हैं ?
सीमन्धर भगवान सिद्ध हैं; श्रेणिक महाराज सिद्ध हैं; इस बाग में वृक्ष बेलें व फल तीनों चीजें हैं; अरे ! इसे तो मिनिस्टर बना ही समझो; इस सभा में अनेकों प्रकार के व्यक्ति बैठे हैं; कपड़ा एक द्रव्य है; इन्द्र व शक्र इन दो शब्दों का एक अर्थ नहीं हो सकता है; नारी व स्त्री एकार्थवाची हैं; कलत्र नारी व दारा ये सब एकार्थवाची हैं; सिंहासन पर बैठे राजा को वीर नहीं कहा जा सकता है; जीव ज्ञानवान है; जीव ज्ञानस्वरूप है। मनुष्य बहुत दुःखी है; संयमी जीवरागी है; विजयवर्धन में बहुत बल है; जीव को कर्म का फल भोगना पड़ता है; कुम्हार घड़ा बनाता है; सिद्ध भगवान केवल ज्ञानी है; भगवान में अनन्त चतुष्टय हैं; मैं व सिद्ध भगवान समान हैं; ज्ञान ही आत्मा है; एक आत्मरमणता ही रत्नत्रय हैं; इस व्यक्ति के चार पुत्र हैं; वृत्तिचन्द बहुत धनिक है। यह एक बड़ा
व्यापारी है। १९. निश्चय व व्यवहार नय का समन्वय करो। २०. निश्चयनय को भूतार्थ कहने का क्या तात्पर्य ? २१. क्या व्यवहारनय सर्वथा अभूतार्थ है, यदि नहीं तो उसे अभूतार्थ
क्यों कहा गया?