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5-म-प्रमाण.
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३-नय अधिकार
-: .. (५. समन्वय) १०७ सर्व विषयों में नय लागू करने से क्या लाभ ? ! उन विषयों के स्वरूप में अथवा तत्सम्बन्धी कथन में दीखने
वाले विरोध प्रतीत होते हैं, उनका समन्वय करके ज्ञान को - सरल व व्यापक बनाना ही नय प्रयोग का प्रयोजन है । १०८ समन्वय किसको कहते हैं ? :: कथन क्रम में भ्रान्तिवश भासमान होने वाले विरोधों को दूर
करके उनमें मैत्री की स्थापना करना समन्वय है। १०६. समन्वय कितने प्रकार से किया जाता है ?
: दो प्रकार से आगे पीछे क्रमपूर्वक बर्तने वाले धर्मों में तो -: - साधन साध्य भाव दिखाकर, और युगपत बर्तने वाले धर्मो में
१. परस्पर अविनाभाव दिखाकर । १२०. साधन साध्य भाव क्या ?
कारण पूर्वक कार्य का उत्पन्न होना साधन साध्य भाव है, जैसे : कुम्हार द्वारा अथवा मिट्टी के लोष्ट द्वारा घड़ा उत्पन्न होना। १११. साधन साध्य भाव कितने प्रकार का होता है ? .:: दो प्रकार का निमित्त नैमित्तिक और उपादान उपादेय । ११. निमित्त नैमित्तिक भाव किसको कहते हैं ?
। दो भिन्न द्रव्यों में जहां कारण कार्य भाव देखा जाय, वहां ti.. कारण को निमित्त कहते हैं और कार्य को नैमित्तिक । जैसे
“घड़े की उत्पत्ति में कुम्हार निमित्त है और घट रूप कार्य
. नैमित्तिक । वहां ऐसा कहने में कि 'कुम्हार ने घड़ा बनाया 3 या उसके निमित्त से घड़ा बना' कुम्हार साधन है और घट
११ उपादान उपादेय भाव किसको कहते हैं ?.. है: एक ही द्रव्य में उसकी पूर्ववर्ती पर्याय कारण है और उत्तर
वर्ती पर्याय कार्य है, जैसे--मिट्टी का पिण्ड उपादान कारण क.. और घड़ा उपादेय कार्य । तहां 'मिट्टी ने घड़ा बनाया अथवा