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--नय-प्रमाण
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३-नय-अधिकार को स्वीकार करे उसे निश्चय नय कहते हैं। जैसे-जीव ज्ञान स्वरूप है या ज्ञानात्मक है ऐसा कहना अभेद व तादात्म्य सूचक
होने से निश्चय नय है। ७३. निश्चयनय के कितने भेद हैं ?
दो हैं-शुद्ध और अशुद्ध। ७४. शुद्ध निश्चय नय किसको कहते हैं ?
शुद्धगुण व शुद्ध पर्याय के साथ द्रव्य को अभेद दर्शाने वाला शुद्ध निश्चयनय है । जैसे-'ज्ञानस्वरूप जीवतत्व है' अथवा 'केवल
ज्ञानस्वरूप सिद्ध भगवान हैं' ऐसा कहना। ७५. अशुद्ध निश्चय नय किसको कहते हैं ?
अशुद्ध पर्यायों के साथ द्रव्य का तादात्म्य दर्शानेवाला अशुद्ध निश्चय नय है। जैसे-'मतिज्ञान स्वरूप संसारी जीव है'। (गुण अशुद्ध नहीं होता पर्याय ही होती है, इसलिये गुण के साथ
तादात्म्य वाला विकल्प यहां घटित नहीं होता)। ७६. व्यवहार नय किसको कहते हैं ?
अभेद द्रव्य में गुण-गुणी भेद करने वाला अथवा भिन्न प्रदेशवर्ती अनेक द्रव्यों में निमित्तादि की अपेक्षा अभेद करने वाला
उपचार व्यवहार नय कहलाता है। ७७. उपचार किसे कहते हैं ?
प्रयोजन वश, मूल वस्तु के अभाव में, उनसे किसी प्रकार का सम्बन्ध रखने वाली अन्य वस्तु को अन्य वस्तु रूप कहना उपचार है। जैसे सिंह के अभाव में सिंह की पहचान कराने के लिये, शक्ल सूरत में समानता होने के कारण बिल्ली को
सिंह कह देना। ७८. उपचार कितने प्रकार का होता है ?
अनेक प्रकार का होता है। जैसे--द्रव्य को गुण का उपचार, द्रव्य में पर्याय का उपचार, एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का उपचार; एक गुण में दूसरे गुण का उपचार, गुण में द्रव्य का उपचार,