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३ - नय अधिकार
परन्तु आगे वाले सभी नयों से महान है । इसी प्रकार आगे भी
जानना ।
६२. सातों नयों के विषय की अल्पता व महानता दर्शाम्रो ।
नैगमनय ज्ञानमय होने के कारण सबसे महान है, क्योंकि ज्ञान में सत् व असत् सभी सम्भव है । संग्रह व्यवहार व ऋजुसूत्र ये तीनों नये अर्थ नय होने के कारण व सब मिलकर भी अकेली नैगमनय से अल्प विषयक हैं क्योंकि उनका विषयभूत क्रियाकारी अर्थ सत् ही होता है असत् नहीं । शब्द, समभिरूढ़ व एवंभूत ये तीनों नये व्यञ्जन नयें होने के कारण सबसे अल्प विषय वाले हैं, क्योंकि अर्थ की अपेक्षा उनका वाचक शब्द स्वयं उनकी अपेक्षा सूक्ष्म है ।
अथवा विशेष रूप से कहने पर - 'नैगमनय' ज्ञाननय व अर्थनय दोनों रूप है, इसलिये सब से महान है। तहाँ भी इसका अर्थनय वाला लक्ष्ण ज्ञाननय वाले लक्षण से अल्प विषय वाला है, क्योंकि ज्ञानात्मक संकल्प सत् व असत् दोनों को स्पर्श करता है और अर्थ केवल सत् को ही ।
अर्थनयों में भी नैगमनय सबसे महान है, क्योंकि वह संग्रह व व्यवहार दोनों के विषयों को युगपत अकेला ही ग्रहण कर लेता है । संग्रहनय नैगमनय से अल्प है, क्योंकि भेद को छोड़कर केवल अभेद को ग्रहण करता है । भेदग्राही होने के कारण व्यवहारनय संग्रह की अपेक्षा भी अल्प है, क्योंकि अभेद की अपेक्षा भेद छोटा माना गया अथवा सामान्य की अपेक्षा विशेष छोटा होता है । व्यवहार के विषय में से भी त्रिकाली सामान्य अंश को छोड़कर केवल वर्तमान समयवर्ती किसी एक अंश को ग्रहण करने के कारण ऋजुसूत्र उससे भी अल्प विषय वाला है ।
८-नय-प्रमाण
शब्दादि तीनों व्यञ्जन नयें मिलकर भी एक ऋजुसूत्र से अल्प विषय वाले हैं, क्योंकि इनका व्यापार अर्थ में न होकर केवल