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७-स्याद्वाद
४-सप्तभंगी अधिकार है कि घट की सत्ता आखिर है या नहीं। तब उसका संशय दूर करने के लिये यह तीसरा भंग है, जो यह प्रगट करता है
कि घट है तो परन्तु पट आदि रूप नहीं है, अपने रूप ही है। १०. केवल 'अस्ति' धर्म कहने में क्या हानि है ?
केवल अस्ति ही अस्ति कहते जाने से भ्रम वश पदार्थ सर्वरूप समझा जा सकता है। भिन्न भिन्न पदार्थों में जो परस्पर व्यतिरेक है वह दृष्टि से लुप्त हो जाता है। जैसे 'घट है ही' ऐसा कहने से यह ग्रहण होना सम्भव है कि सभी द्रव्यों रूप से, सभी जगह, हर समय, हर प्रकार से वह हो वह है अर्थात् सर्व
लोक में जो कुछ भी है सर्व घट रूप है। ११. केवल 'नास्ति' धर्म कहने में क्या हानि है ? ।
केवल नास्ति ही नास्ति कहते जाने से भ्रम वश पदार्थ का सर्वथा लोप होता प्रतीत होता है। जैसे कि 'घट नहीं ही है' ऐसा कहने से यह प्रतीत होता है. कि लोक में घट नाम का कोई पदार्थ ही नहीं है । अथवा दूसरे पदार्थों के अभाव का
नाम ही घट है, जैसे कि प्रकाश का अभाव अन्धकार । १२. 'अस्ति नास्ति' तीसरे भंग को कहने से क्या लाभ है ?
पृथक-पृथक से पदार्थ का अस्तित्व व नास्तित्व कहने में कदाचित श्रोता का विरोध भासने लगे, कि पदार्थ है भी
और नहीं भी सो कैसे, तो उसके विरोध को दूर करने के लिये तीसरा भंग प्रवृत्त हुआ है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि पदार्थ अपने रूप से सत् होते हुए भी सर्व रूप से सत् नहीं है, बल्कि पर रूप से असत् भी है । और पर रूप से असत् होते भी सर्व प्रकार असत् नहीं है, बल्कि अपने रूप से सत् भी है। अथवा इस भंग से घोषित होता है कि दूसरे का अभाव ही पदार्थ का सद्भाव या स्वरूप नहीं है बल्कि वह अपने जुदे स्वतंत्र स्वरूप को धारण करता है। जैसे अन्धकार के अभाव का नाम ही प्रकाश नहीं है, बल्कि उसका स्वरूप अन्धकाराभाव की अपेक्षा कुछ जुदा ही प्रतीति में आता है।