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७-स्याद्वाद
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३-स्यावावाधिकार
२३. सम्यगेकान्त किसको कहते हैं ?
'स्यात्' पद सहित एवकार का प्रयोग करना सम्यगेकान्त है;
जैसे देवदत्त स्यात पिता ही है। २४. मिथ्या एकान्त किसको कहते हैं ?
'स्यात्' पद रहित एवकार का प्रयोग करना मिथ्या एकान्त
है, जैसे देवदत्त पिता ही है। २५. 'स्यात' पद में ऐसी कौनसी विशेषता है कि उसके सद्भाव व
अभाव से ही एकान्त सम्यक व मिथ्यापने को प्राप्त हो जाता
'स्यात्' पद वक्ता की दृष्टि-विशेषका सूचक है। यह बताता है कि वक्ता जो इस समय किसी विवक्षित धर्म की विधि तथा अन्य धर्मों का निषेध कर रहा है, वह वास्तव में विधि निषेध नहीं है, बल्कि मुख्यता गौणता है । स्यात् पद से शून्य होने पर वही एवकार अन्य धर्मों का सर्वथा व्यवच्छेद कर डालता है। मुख्यता और गौणता किसको कहते हैं ? वक्ता किसी एक दृष्टि से पदार्थ को जब विवक्षित एक धर्म रूप ही बताता है और एवकार द्वारा उस समय अन्य सर्व धर्मों का निषेध कर देता है, तब वह विधि तो मुख्यता और वह निषेध गौणता कहलाती है, क्योंकि निषेध करते हुए भी
अन्तरंग में उन्हें भूल नहीं जाता। २७. निषेध व गौणता में क्या अन्तर है ?
निषेध द्वारा तो सर्वथा लोप किया जाता है, अर्थात किसी प्रकार कहां भी तथा कभी भी उस धर्म को स्वीकार करने की भावना नहीं रहती। परन्तु गौणता में अन्य दृष्टि से उसे उन्हें भी किसी अन्य स्थल पर किसी अन्य समय स्वीकार कर लिया जाता है। जैसे-'देवदत्त पिता ही है' ऐसा कहने से घोषित होता है कि वक्ता उसको सारे जगत के जीवों का पिता मानता है, पुत्रादि किसी का भी नहीं मानता, यह निषेध