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६- तत्वार्थ
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( ३ सम्यग्ज्ञान)
४८. सम्यग्ज्ञान किसको कहते हैं ?
२ - रत्नत्रयाधिकार
शुद्धात्मा के विशेष प्रतिभास को अथवा सात तत्वों के विशेष परिज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं ।
४६. सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान में क्या अन्तर है ?
सामान्य व विशेष का अन्तर है । जैसे दर्शनोपयोग सामान्य प्रतिभास है और 'ज्ञानोपयोग' विशेष प्रतिभास है वैसे ही सम्यग्दर्शन का विषय शुद्धात्मा तथा सात तत्वों का सामान्य स्वरूप है और सम्यग्ज्ञान का विषय उन्हीं का विशेष ग्रहण है । ५०. क्या ज्ञान भी सम्यक् व मिथ्या होता है ?
वास्तव में ज्ञान कभी सम्यक् मिथ्या नहीं होता। अभिप्राय के सम्यक् व मिथ्यापने मे वह सम्यक् व मिथ्या कहाता है ।
५१. सम्यग्दृष्टि ने अन्धेरे में रस्सी को सांप समझा और मिथ्या दृष्टि ने उसे रस्सी ही समझा। किसका ज्ञान सम्यक् ? ज्ञान तो सम्यग्दृष्टि का ही सम्यक् है; क्योंकि यहां मोक्ष मार्ग में शुद्धात्मा का ज्ञान ही इष्ट है । अन्य विषयों को जानो अथवा न जानो, ठीक जानो या विपरीत जानो, हीन जानो या अधिक जानो उससे सम्यग्ज्ञान का सम्बन्ध नहीं । सम्यग्दृष्टि रस्सी
सर्प जानता हुआ भी अपने शुद्ध स्वरूप को उससे सर्वथा अस्पृष्ट समझता रहता है और मिथ्यादृष्टि रस्सी को रस्सी जानता हुआ भी उसे अपने लिये इष्ट अनिष्ट समझता है । ५२. सम्यग्ज्ञान के साथ सम्यग्दर्शन का क्या सम्बन्ध है ?
सम्यग्दर्शन प्रगट होने पर अभिप्राय ठीक हो जाने के कारण पहले वाला ज्ञान ही सम्यक् संज्ञा को प्राप्त हो जाता है, कोई नया ज्ञान उत्पन्न नहीं होता ।
५३. सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान में पहले कौन होता है ? दोनों युगपत होते है, क्योंकि सम्यग्दर्शन हो जाने पर ज्ञान का विशेषण ही बदलता है, उसकी तरतमता में अन्तर नहीं पड़ता ।