________________
६-तत्वार्थ
२७१
१-नव पदार्थाधिकार
है, यही बन्ध तत्व है। जीव के निर्मल परिणामों रूप भाव संवर के निमित्त से उनका आगमन रुक जाता है, जिससे कर्म संग्रह की वृद्धि रुक जाती है, यही संवर तत्व है । तत्पश्चात जीव के भाव निर्जरा रूप तप के प्रभाव से संचित पूर्व कर्म भी अपने काल से पहिले ही उदय आ आकर झड़ने लगते हैं, यही निर्जरा तत्व है । अन्त में जोव के भावमोक्ष के निमित्त से समस्त कर्म व शरीर भी पूर्णरूपेण उस जीव का साथ छोड़कर अपने अपने कारणों में लय हो जाते हैं, यही मोक्ष तत्व है। इस प्रकार सातों तत्वों के द्रव्यात्मक विकल्प अजीब तत्व में घटित होते हैं।