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१ - नव पदार्थाधिकार
वाले जीव व अजीव विवक्षित जो कि अपने अपने गुणों के आश्रयभूत हैं, और तत्वों के प्रकरण में भावात्मक जीव व अजीव विवक्षित हैं । द्रव्य के प्रकरण में राग द्वेषादि जीव रूप हैं और तत्व के प्रकरण में वही अजीव रूप हैं ।
६२. आस्रवादि तत्वों के भाव व द्रव्य दो भेद करने का क्या
६- तत्वार्थ
प्रयोजन है ?
आस्रवादि जीव रूप भी होते हैं और अजीव रूप भी यही बताने के लिये ।
६३. आस्रवादि सर्व तत्व जीन अजीव रूप कैसे होते हैं ?
सात तत्वों में पहिले दो जीव व अजीव मूल तत्व होने से सामान्य हैं । इन दोनों के संयोग व वियोग के कारण ही अगले पांच तत्व अथवा सात पदार्थ बन जाते हैं । इस लिये वे सब इन्हीं दोनों के विशेष या पर्याय हैं । तहां भावास्रव, भावबन्ध, भाव संवर, भाव निर्जरा, भाव मोक्ष, भावपुण्य और भाव पाप तो जीव के विशेष हैं, और द्रव्य आस्रवादि सब अजीव के विशेष हैं ।
६४. आस्रवादि स्वयं जीव व अजीव के विशेष होने से जीव व अजीव दो ही तत्व कहना पर्याप्त था ? यह कोई दोष नहीं है । यहाँ मोक्ष मार्ग के प्रकरण में जीव व अजीव की जिन विशेषताओं को जानना अत्यन्त प्रयोजनीय है, उनको दर्शाने के लिये ही वे विशेष पृथक से ग्रहण किये गये हैं । संक्षेप से कहने पर तो ही दो ही तत्व हैं- जीव व अजीव ।
६५. इन सात तत्वों की सत्ता किसमें पाई जाती है ? जीव व पुद्गल इन दो द्रव्यों में पाई जाती है । ६६. जीव में सात तत्वों की सत्ता कैसे पाई जाती है ?
मैं चेतन लक्षण अन्तस्तत्व जीव हैं । यह शरीर तथा इसके साधक बाधक सब बहिर्तत्व अजीव हैं । यद्यपि धन धान्यादि सभी बहिः तत्व अजीव हैं, फिर भी इनमें मेरे तेरे पने की अथवा