SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चम अध्याय (गुण स्थान) १. मोक्ष व उसका उपाय (१) संसार के सब प्राणी सुख को कहते हैं और सुख ही का उपाय कहते हैं, परन्तु सुख को प्राप्त क्यों नहीं होते ? संसारी जीव असली मुख का स्वरूप और उसका उपाय न तो जानते हैं और न उसका साधन करते हैं, इसलिये सुख को भी प्राप्त नहीं होते। (२) असली सुख का क्या स्वरूप है ? आल्हाद स्वरूप जीव के अनुजीवी गुण को असली सुख कहते हैं। यही जीव का खास स्वभाव है, परन्तु संसारी जीवों ने भ्रमवश सातावेदनीय कर्म के उदयजनित उस असली सुख की वैभाविक परिणतिरुप साता परिणाम को ही सुख मान रखा है। (३) संसारी जीव को असली सुख क्यों नहीं मिलता? कर्मों ने उस सुख को घात रखा है। इस कारण असली सुख नहीं मिलता। (४) संसारी जीव को क्या असली सुख मिल सकता है ? मोक्ष होने पर। (५) मोक्ष का स्वरूप क्या है ? आत्मा के समस्त कर्मों के वित्रमोक्ष (अत्यन्त विभोग) को मोक्ष कहते हैं। (६) उस मोक्ष की प्राप्ति का उपाय क्या है ? संवर और निर्जरा।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy