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३-कर्म सिद्धान्त
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३-बन्धकारण अधिकार
कारण १६ तो ये घटी; और पांचों शरीर के पांचों बन्धन तथा पाँचों संघात का ग्रहण नहीं किया गया, इस कारण १० ये घटी और सम्यमिथ्यात्व तथा सम्यक्प्रकृति मिथ्यात्व इन दो प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता है। क्योंकि सम्यग्दृष्टि जीव पूर्वबद्ध मिथ्यात्व प्रकृति के तीन खण्ड करता है, तब इन दो प्रकृतियों का प्रादुर्भाव होता है। इस कारण दो प्रकृतियां
ये घटी। ३६. स्पर्शादि शेष १६ का तथा बन्धन संघात का ग्रहण क्यों न
किया ? स्पर्शादि की बीसों विशेष प्रकृतियें सामान्य स्पर्शादि चार में गभित समझना । बन्धन संघात को अपने अपने शरीर
के साथ गभित समझना। १४०) द्रव्यास्रव के कितने भेद हैं ?
दो हैं—एक साम्परायिक दूसरा ईर्यापथ । (४१) साम्परायिक आस्रव किसको कहते हैं ?
जो कर्म परमाणु जीव के कषाय भावों के निमित्त से आत्मा में कुछ काल के लिये स्थिति को प्राप्त हों, उनके आस्रव को
साम्परायिक आस्रव कहते हैं। (४२) ईर्यापथ आस्रव किसको कहते हैं ?
जिन कर्म परमाणुओं का बन्ध उदय और निर्जरा एक ही
समय में हो, उनके आस्रव को ईर्यापथ आस्रव कहते हैं। (४३) इन दोनों प्रकार के आस्रवों के स्वामी कौन हैं ?
साम्परायिक आस्रव का स्वामी कषाय सहित और ईर्यापथ
का स्वामी कषाय रहित आत्मा होता है। (४४) पुण्यात्रव व पापालव का कारण क्या है ?
शुभ योग से पुण्यास्रव और अशुभ योग से पापास्रव होता है । (४५) शुभ योग और अशुभ योग किसको कहते हैं ?
शुभ परिणाम से उत्पन्न योग को शुभ योग और अशुभ परिणाम