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३-कर्म सिद्धान्त
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१-बन्धाधिकार स्त्री पुरुषों के दुर्भाग्य को उत्पन्न करने वाला शरीर हो, वह
दुर्भग नाम कर्म है। (१३६) आदेय नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से कान्ति (प्रभा) युक्त शरीर उपजे उसको
आदेय नाम कर्म कहते हैं। (१४०) अनादेय नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से कान्ति (प्रभा) युक्त शरीर न हो उसको
अनादेय नाम कर्म कहते हैं। (१४१) सुस्वर नाम कर्म किसे कहते हैं ?
जिसके उदय से अच्छा स्वर हो उसको सुस्वर नाम कर्म
कहते हैं। (१४२) दुस्वर नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से अच्छा स्वर न हो उसको दुस्वरनामकर्म
कहते हैं। (१४३) यशः कीति नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से संसार में जीव का यश हो उसे यश:
कीति नाम कर्म कहते हैं। (१४४) अयशः कीति नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से संसार में जीव की तारीफ न होवे
उसको अयशः कीति नाम कर्म कहते हैं। (१४५) तीर्थंकर नाम कर्म किसको कहते हैं ?
अर्हन्त पद के कारणभूत कर्म को तीर्थकर नाम कर्म कहते हैं । (१४६) गोत्र कर्म किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से सन्तान के क्रम से चले आये जीव के
आचरण रूप उच्च नीच कुल में जन्म हो । (१४७) गोत्र कर्म के कितने भेद हैं ?
दो भेद हैं-उच्च गोत्र और नीच गोत्र । (१४८) उच्च गोत्र कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से उच्च गोत्र (कुल) में जन्म हो।