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२- द्रव्य गुण
पर्याय
४-जीव गुणाधिकार
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२६६. क्या शुद्ध जीव व पुद्गल में भी वैभाविकी शक्ति है ?
हां है, पर निमित्तों का अभाव के कारण व्यक्त नहीं हो पाती । कारण कि वह शक्ति है गुण नहीं, जो कि उसका नित्य कुछ न कुछ परिणमन पाया जाये ।
२७०. क्या सिद्ध भगवान में क्रियावती व वैभाविक शक्ति हैं ? हां हैं, पर व्यक्त नहीं हो सकर्ती । व्यर्थ पड़ी रहती हैं । २७१. क्या स्थित हुए जीव व पुद्गल में क्रियावती शक्ति है ?
हां है, परन्तु इस समय व्यक्त नहीं है, द्रव्य के चलने पर व्यक्त हो जायेगी । अथवा प्रदेश परिस्पन्दन रूप से उनके भीतर अब भी व्यक्त है ।
२७२. जीव द्रव्य में क्रियावती व भाववती शक्ति का द्योतन किन नामों से किया जाता है ?
योग व उपयोग शब्द से, क्योंकि योग परिस्पन्दन स्वरूप है और उपयोग परिणमन स्वरूप ।
२७३. वैभाविकी शक्ति के रहते सिद्ध भगवान पुन अशुद्ध क्यों नहीं हो जाते ?
वैभाविकी शक्ति गुण नहीं जो इसे हर अवस्था में व्यक्त होना ही पड़े । निमित्तादि मिलने पर व्यक्त होती है । और सिद्धावस्था में उनका अभाव है।