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२-द्रव्य गुण पर्याय
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४-जीव गुणाधिकार हो, बल्कि योग्य निमित्तादि मिलने पर कदाचित व्यक्त होती
हो वह शक्ति है। २५६. जीव में गुणों के अतिरिक्त कितनी शक्तिये हैं ?
तीन प्रधान हैं-क्रियावती शक्ति; भाववती शक्ति व वैभाविकी
शक्ति। २५७. क्रियावती शक्ति किसे कहते हैं ?
जिस शक्ति के योग से द्रव्य गमनागमन या हिलन डुलन कर
सके उसे क्रियावती शक्ति कहते हैं। २५८. क्रियावती शक्ति के कितने कार्य हैं ?
दो हैं—परिस्पन्दन व क्रिया। २५९. परिस्पन्दन व क्रिया में क्या अन्तर है ?
द्रव्य के प्रदेशों का भीतरी कम्पन परिस्पन्दन कहलाता है और
पूरे द्रव्य का बाहरी गमनागमन क्रिया कहलाती है। २६०. कियावती को शक्ति क्यों कहा गुण क्यों नहीं ?
क्योंकि द्रव्य सदा गमन करता रहे ऐसा नहीं होता, न ही उसके प्रदेशों में नित्य परिस्पन्दन पाया जाता है। जैसे कि संसारी जीव के प्रदेशों में परिस्पन्दन होता रहने पर भी मुक्त जीव में वह नहीं पाया जाता और इसी प्रकार स्कन्ध में होता रहने पर भी परमाणु में नहीं पाया जाता अर्थात द्रव्य की अशुद्धावस्था में ही परिस्पन्दन होता है शुद्धावस्था में नहीं, अतः उसके
कारण को गुण न कहकर शक्ति कहा गया है। २६१. भाववती शक्ति किसे कहते हैं ?
क्रियावती शक्ति को छोड़कर द्रव्य के अन्य सर्व गुण नित्य परिणमन करते रहते हैं यही उस द्रव्य की भाववती
शक्ति हैं। २६२. भाववती को शक्ति क्यों कहा ?
क्योंकि इसकी कोई स्वतंत्र व्यक्ति नहीं होती। द्रव्य में भावों की अवस्थिति की द्योतक मान है।