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उपायात
सत् और असत्, नित्य-अनित्य, एक-अनेक, उत्पाद-व्यय, स्निग्धता-रूक्षता, आकर्षण-विकर्षण-ऐसी परस्पर विरोधी अनेकों शक्तियों का आवास वस्तु है । विश्व के ये समस्त पदार्थ अपने द्रव्य में अन्तर्मग्न रहने वाले अपने अनन्त धर्मों के समूह को चुम्बन (स्पर्श) करते हैं तथापि वे एक दूसरे को स्पर्श न करते हुए पूर्णतयः अस्पर्शित हैं। इस विराट जगत् में वे सम्पूर्ण चिद्-अचिद् द्रव्य अत्यन्त निकट एक क्षेत्रावगाह रूप से तिष्ठ रहे हैं, तथापि वे कदाचिद् भी अपने स्वरूप से च्युत नहीं होते, इसलिए वे टंकोत्कीर्ण की भांति शाश्वत पृथक् स्थिर रहते हैं। वे अनन्त द्रव्य निमित्त-नमितिक रूप से विरुद्ध तथा अविरुद्ध कार्य करते हुए विश्व के रंग-मंच पर नाना प्रकार का अभिनय कर रहे हैं जिसको समझना साधारण बुद्धि के लिए अत्यन्त दुष्कर है। सर्वज्ञ भगवान की वाणी में इसका विशद विवेचन हुआ है । अतः उन जटिल वस्तु तत्वों को बुद्धिग्राह्य बनाने के लिए तथा 'जिन' कथित सिद्धान्त के प्रतिपादक पारिभाषिक शब्दों को सरल व सुबोध बनाने के लिए यह प्रयास किया गया है। पंडित गोपालदास वरय्या जी रचित् जैन सिद्धान्त प्रवेशिका के आधार पर इस पुस्तिका रूप कुजी का निर्माण हुआ है । मेरा विश्वास है कि वस्तु तत्व दोहन के जिज्ञासुओं को यह दीपकवत् मार्गदर्शक बनेगी।
"श्री १०८ आचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज ट्रस्ट" (पंजीकृत) दिल्ली ने अत्यन्त प्रसन्नता व उत्साह पूर्वक इसका प्रकाशन कराकर जो संस्कृति व साहित्य की सेवा की है तथा धर्मानुराग प्रगट किया है वह प्रशंसनीय है। इसके मुद्रण में राजेन्द्र कुमार जैन मेरठ (सम्पादक 'वीर') को विस्मरण नहीं किया जा सकता, जिन्होंने अति रुचिपूर्वक कठिन श्रम से इसे मुद्रित कराया है।
___ अन्त में जिनके सानिध्य में इस विषय का मंजन, संयोजन व संवर्धन हो सका है उन श्री जिनेन्द्र वर्णी जी को यह कृति सप्रेम समर्पित
० कु० कौशल
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