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२-द्रव्य गुण पर्याय १२५ २-जीव गुणाधिकर १०६. भव प्रत्यय अवधिज्ञान किसे कहते हैं और किनको होता है ?
केवल भव के सम्बन्ध से जो सभी देवों व नारकीयों का सामान्य रूप से होता है, वह भव प्रत्यय कहलाता है। क्या भव प्रत्यय में ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम की आवश्यकता नहीं? नहीं, कर्म के क्षयोपशम बिना तो कोई भी ज्ञान होना सम्भव नहीं। इतनी बात है कि यहां वह क्षयोपशम बिना किसी चारित्र आदि की साधना के स्वत: उस भव के निमित्त माव से हो जाता है, जब कि क्षयोपशम निमित्तक में वह सम्यक्त्वादि
की विशेष साधना के प्रभाव से होता है। १११. मिथ्यादृष्टियों को भी तो अवधिज्ञान कहा गया है ?
उसे विभंग ज्ञान कहते हैं और प्राय भवः प्रत्यय ही होता है। कदाचित मनुष्य व तिर्यचों को होता है तो वह क्षणमात्र पश्चात ही नष्ट हो जाता है। क्योंकि मिथ्यादृष्टि मनुष्य तिर्यंचों में वह उत्पन्न नहीं होता, बल्कि अवधिज्ञानी सम्यदृष्टियों का सम्यक्त्व टूट जाने पर जब वे मिथ्यात्व अवस्था को प्राप्त होते हैं तब उनमें क्षण मात्र के लिये वह पहिला ही
अवधिज्ञान कदाचित पाया जाता है। ११२. भव प्रत्यय अवधिज्ञान देशावधि होता है या परमावधि कारण,
सहित बताओ? वह देशावधि ही होता है और वह भी जघन्य दशा वाला। परमावधि व सर्वावधि वहां सम्भव नहीं । कारण कि तपश्चरण व चारित्र को देव नारकियों में अवकाश नहीं, जिसके निमित्त से कि उत्कृष्ट ज्ञान हो सके । सम्यग्दर्शन अवश्य किसी किसी को होता है पर चारित्रहीन वह अकेला उत्कृष्ट ज्ञान
को कारण नहीं। ११३. प्रतिपाती ज्ञान किसे कहते हैं ?
जो होकर छूट जावे उसे प्रतिपाती कहते हैं।