________________
२-द्रव्य गुण पर्याय
४-जीव गुणाधिकार (घ) तदन्तर धारणा होती है । अवाय और धारणा में इतना
अन्तर है कि जब तक उस निर्णीत ज्ञान का संस्कार दृढ़ नहीं होता तब तक वह अवाय कहलाता है और उसका संस्कार इतना दृढ़ हो जाये कि कालान्तर में भी स्मरण किया जा सके तब वही ज्ञान धारणा नाम
पाता है। ४६. अवग्रह आदि का यह क्रम प्रतीति में क्यों नहीं आता?
ये चारों बातें इतनी शीघ्रता के साथ हो जाती हैं कि साधारण बुद्धि से पकड़ में नहीं आतीं। विशेष उपयोग देने पर अवश्य
प्रतीति में आती हैं। ५०. क्या मति ज्ञान का इतना ही कार्य है या कुछ और भी?
मतिज्ञान दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष व परोक्ष । उपरोक्त चार बातें तो उसका सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष रूप हैं। इसके पश्चात उसका परोक्ष रूप प्रारम्भ होता है, जिसके ३ भेद हैं- स्मृति, प्रत्यभिज्ञान व चिन्ता या तकं । इन तीनों के लक्षण पहिले बता दिये गये हैं, देखो अध्याय १ अधिकार ३ । मति ज्ञान के परोक्ष भेदों का क्रम दर्शाओ? धारणा के संस्कार में बैठे हुए पदार्थ की कालान्तर में कदाचित स्मृति हो सकती है। स्मृति होने पर ही प्रत्यभिज्ञान होना संभव है, क्योंकि वर्तमान प्रत्यक्ष से पूर्व स्मृति का जोड़ अन्यथा हो नहीं सकता। एक ही विषय का पुनः पुनः प्रत्यभिज्ञान होता रहे तब उस विषय सम्बन्धी व्याप्ति या तर्क ज्ञान उत्पन्न हो जाता है। अर्थात ऐसी धारणा दृढ़ हो जाती है कि जब जब और जहां जहां भी यह होगा तब तब व तहां तहां ही यह भी होगा और यदि यह न होगा तो यह भी न होगा। तर्क या व्याप्ति ज्ञान का ही हेतु रूप से प्रयोग करने
पर अनुमान ज्ञान होता है जो श्रुतज्ञान के अन्तर्गत है। ५२. क्या प्रत्येक पदार्थ विषय मति ज्ञान में ये आठों बातें होती हैं ?
नहीं, किसी को अथवा किसी समय केवल अवग्रह होकर छुट
५१.