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२-द्रव्य गुण पर्याय
३-गुणाधिकार ६१. रूपी पदार्थ हो जाने जा सकते हैं अरूपी नहीं ?
नहीं, अरूपी पदार्थ यद्यपि इन्द्रिय ज्ञान गोचर नहीं पर योगज ज्ञान विशेष द्वारा अवश्य जाने जा रहे हैं। क्योंकि उनमें भी
प्रमेयत्व गुण है। ६२. जानने वाला स्वयं अपने को कैसे जाने ?
जानने वालों में दो गुण हैं -ज्ञान व प्रमेयत्व । ज्ञान द्वारा वह जानता है और प्रमेयत्व द्वारा जनाया जाता है। इस प्रकार
स्वयं अपने को भी जानता है। ६३. ज्ञान होने व ज्ञात होने की ये दो शक्तियें किसमें हैं ?
जीव में। ६४. प्रमेयत्व गुण को जानने का क्या प्रयोजन? ।
समस्त विश्व अपने प्रमेयत्व द्वारा मेरे ज्ञान को अपना सर्वस्व अर्पण को स्वयं तैयार है, फिर मैं जगत के पदार्थों के जानने के प्रति व्यग्र क्यों होऊं। साक्षी रूप से स्थित रहते हुए, ज्ञान को सहज अपना कार्य करने दू।
(६. अगुरुलघुत्व गुण) (६५) अगुरुलघुत्व गुण किसे कहते हैं ?
जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य की द्रव्यता कायम रहे अर्थात्(क) एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप न परिणमै । (ख) एक गुण दूसरे गुण रूप न परिणमै ।। (ग) एक द्रव्य के अनेक या अनन्त गुण बिखर कर जुदे जुदे न
हो जावें; उसको अगुरुलघुत्व गुण कहते हैं। ६६. 'अगुरुलघु' शब्द का क्या तात्पर्य ?
अ+ गुरु + लघु । अनहीं; गुरु=भारी या बड़ा; 'लघु = हलका या छोटा। कोई भी द्रव्य प्रमाण या सीमा को उल्लंघन
करके भारी या हलका अथवा छोटा या बड़ा नहीं बन सकता। ६७. 'द्रव्य को द्रव्यता कायम रहे' इससे क्या समझे?
द्रव्य गुणों का समूह है। उसकी द्रव्यता इसी में है कि उसके