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जैनसिद्धांतसंग्रह । [.७९
श्रीकविवरभागचन्द्रजीकृत{ महाकाराष्टकस्तोत्र।
(पं० बुद्भूलालजीकृत भाषा छन्द सहित ) यदीये चैतन्ये, मुकुर इच भावाश्चिदचितः ।। समं भान्ति धौव्यव्ययजनिलसन्तोऽन्तरहिताः॥ जगत्साक्षी मार्गप्रकटनपरो भानुरिव यो। महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (न: ॥१॥
चेतन अचेतन तत्त्व नेते, हैं अनन्त जहानमें । उत्पाद व्यय ध्रुवमय मुकुरवत् , लसत नाके ज्ञानमें ॥ जो जगतदरशी जगतमें सन्-मार्ग दर्शक रवि मनो।
ते वीर स्वामीजी हमारे नयनपथगामी बनो ॥१॥ अतानं यच्चक्षुः, कमलयुगलं स्पंदरहितं । जनान्कोपापायं प्रकटयति वाभ्यन्तरमपि ।। स्फुट मूर्तियस्य प्रशमितमयी वातिविमला । महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (न:) ॥२॥
टिमिकार विन जुग कमल लोचन, ललिमाते रहित हैं। बाह्य अंतरकी क्षमाको, भविजनोंसे कहत हैं । अति परम पावन शांति मुद्रा, जासु तन उज्ज्वल धनो।
ते वीरस्वामीनी हमारे, नयनपथगामी बनो ॥२॥ ‘नमन्नाकेंद्रालीमुकुटमणिभाजालजटिलं । लसत्पादाम्भोजव्यमिह यदीयं तनुभृतां ॥ भवज्वालाशान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि । महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (न:) ॥३॥